*रियासत रामपुर और राजा रामसिंह : कुछ प्रश्न*
रियासत रामपुर और राजा रामसिंह : कुछ प्रश्न
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नवाबों से पहले का रामपुर का इतिहास शोध का रोचक विषय है। इतिहास में रुचि लेने पर यह पता चलता है कि रामपुर के संस्थापक राजा रामसिंह थे। राजा रामसिंह के नाम पर रामपुर की स्थापना हुई। इतिहासकारों के अनुसार “रामपुर रियासत 1774 ईस्वी में जब एक पृथक राज्य के रूप में स्थापित हुई उस समय यहाँ पर बहुत कम मौहल्ले थे । जिनमें सबसे प्राचीन मोहल्ला राजद्वारा था। कहा जाता है कि प्राचीन राजाओं के वंशज जो कि कठेरिया राजपूत हुआ करते थे ,वह यहीं रहा करते थे।”( संदर्भ 1 )
एक अन्य इतिहासकार के शब्दों में “रामपुर पहले चार गाँवों का एक खंड था। कठेर के राजा रामसिंह के नाम पर रमपुरा मशहूर था। ठोठर और राजद्वारा चार गाँवों में से पुराने आबाद हैं ।”(संदर्भ 2)
उपरोक्त जानकारी यद्यपि बहुत कम है लेकिन फिर भी इनसे इस बात पर तो प्रकाश पड़ता ही है कि रामपुर का नामकरण कैसे हुआ तथा यह भी पता चलता है कि राजद्वारा यहाँ की सबसे पुरानी आबादी वाला क्षेत्र अर्थात कस्बा या मोहल्ला या गाँव जो भी कह लीजिए था।
राजद्वारा आज भी खूबसूरती के साथ बसा हुआ है । यह रामपुर शहर का हृदय स्थल है तथा बाजार की मुख्य सड़क पर स्थित है । अन्य मोहल्ले कौन-कौन से रहे होंगे, इस पर प्रकाश नहीं पड़ता । लेकिन राजद्वारा के आसपास पीपल टोला, चाह इंछाराम और कूँचा परमेश्वरी दास हिंदुओं के निवास का पुराना क्षेत्र रहा है। संभवतः यह मौहल्ले राजद्वारा का ही एक अंग हो सकते हैं , क्योंकि यह बहुत पास-पास हैं । जिन अन्य तीन गाँवों का उल्लेख किया गया है उनमें एक तो ठोठर हो गया ,बाकी दो का पता नहीं।
नवाब फैजुल्ला खाँ ने 1774 में नवाबी शहर रामपुर बसाया था, ऐसा माना जाता है । इसी दौर में उन्होंने इतिहासकारों के शब्दों में कहा जाए तो “रुहेला सरदारों और खानदानों को एक एक प्लाट दिया जो उनके घेर के नाम से आज भी प्रसिद्ध हैं। जैसे घेर नज्जू खाँ, घेर अहमद शाह खाँ”( संदर्भ 3)
इस बात पर सोचना पड़ेगा कि रोहेला सरदारों के हाथ में सत्ता की बागडोर कैसे आई । रोहेला अफगानिस्तान के “रोह” पर्वतीय क्षेत्र के रहने वाले बहादुर लोग थे । जिन्होंने तलवार के बल पर तथा अपने युद्ध कला कौशल के द्वारा रुहेलखंड तथा रामपुर में अपना साम्राज्य स्थापित किया । 1742 ईस्वी में रोहेला सरदार नवाब अली मोहम्मद खाँ ने कठेर के प्रशासक राजा हरनंदन खत्री को युद्ध में पराजित करके कठेर पर अपना शासन स्थापित किया । यह कठेर अपने आप में बहुत बड़ी रियासत थी। अफगानिस्तान के रोहेला सरदार इसे मुल्क कठेर कहकर पुकारते थे ,जिसमें न केवल रामपुर अपितु बरेली मुरादाबाद संभल पीलीभीत बदायूँ और बिजनौर के जिले शामिल होते थे । इसकी राजधानी जिला बरेली में स्थित आँवला हुआ करती थी ।( संदर्भ 4)
संभवतः रामपुर रियासत को क्योंकि राजा रामसिंह के समय से चार गाँवों का खंड कहा जाता था, इसलिए रोहेला सरदारों ने भी अपने नए साम्राज्य का नाम उसी “खंड” शब्द से जोड़कर रूहेलखंड रख दिया होगा।
अब यहाँ से नवाबी शासन का आरंभ होता है। मगर रामपुर के इतिहास से संबंधित कुछ पृष्ठ अभी अधूरे रह गए। राजा रामसिंह तो कठेर राजपूत हैं, लेकिन 1742 में जिस राजा को परास्त करके कठेर साम्राज्य का अंत हुआ तथा रुहेलखंड साम्राज्य रोहेला सरदारों का आरंभ हुआ , वह राजा खत्री थे । बीच में स्पष्टतः कुछ छूट रहा है। यह तो निश्चित है कि राजा हरनंदन खत्री केवल नाम मात्र के प्रशासक नहीं थे। उनके पास सेना भी थी। इसीलिए तो युद्ध हुआ और युद्ध करके रूहेलखंड के संस्थापक नवाब मोहम्मद अली खाँ ने अपना साम्राज्य स्थापित किया था।
अब प्रश्न यह उठता है कि राजा के पास उसका किला अथवा उसका राजमहल होना आवश्यक है । जब इस बिंदु पर हम खोज करते हैं तो संयोगवश एक बहुत सुंदर लेख हमें प्राप्त होता है । इस लेख में रामपुर के पुराने किले के बारे में चर्चा है तथा नवाब हामिद अली ख़ाँ के जमाने का किले का एक नक्शे का उल्लेख है जिसमें किले के बाहर की ओर पुराना किला स्थित दर्शाया गया है । शोधकर्ता ने इस किले को जच्चा – बच्चा सेंटर /पुरानी कोतवाली आदि की इमारत अर्थात हामिद गेट के सामने के स्थान के रूप में खोजा है । (संदर्भ 5)
इस खोज में दम है क्योंकि ” ओल्ड फोर्ट बिजलीघर” के नाम से बिजली विभाग के पुराने पत्राजातों में भी “पुराना किला “शब्दावली प्रयोग में आती रही है, जो इस बात का प्रमाण है कि वास्तव में कोई पुराना किला मौजूद है।
पुराने किले के निर्माण का कोई स्पष्ट विवरण प्राप्त नहीं हो रहा है, जो इस बात को संशय में डालता है कि इसका निर्माण नवाबों द्वारा सत्ता की प्राप्ति के बाद किया गया अथवा जिस तरह उन्हें राजद्वारा आदि क्षेत्र विरासत में प्राप्त हुए ,वैसे ही कहीं पुराना किला भी तो प्राप्त नहीं हो गया।
दूसरा और भी ज्यादा महत्वपूर्ण प्रश्न ” मछली भवन” का है । शोधकर्ताओं के अनुसार (संदर्भ 6 ) मछली भवन नवाब कल्बे अली खाँ के “दीवाने खास” के रूप में प्रयोग में लाया जाता था तथा नवाब हामिद अली ख़ाँ ने इसका सुंदरीकरण और विस्तार किया । लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि मछली भवन के निर्माण का विवरण भी इतिहास की पुस्तकों में अभी तक सामने नहीं आया है । अतःयह प्रश्न बना रहेगा कि यह नवाबों से पूर्व का निर्माण तो नहीं है ?
नवाबी शासन से पहले के राजा के गाँव सरीखे शासन में कुछ ढूँढना तथा उसे प्रामाणिक रूप से सामने रख पाना कठिन ही है।
सबसे बड़ी दिक्कत यह भी है कि राजा का कोई इतिहास लिखा भी होगा तो वह उर्दू अथवा फारसी में ही होगा। जब तक उन पुस्तकों का हिंदी अनुवाद सामने नहीं आता, इतिहास पर शोध आगे नहीं बढ़ सकता।
1865 ईसवी में नवाब कल्बे अली खाँ के राज्याभिषेक के उपरांत रामपुर में पहला सार्वजनिक मंदिर “पंडित दत्तराम का शिवालय” मंदिरवाली गली में बना । यह नवाब कल्बे अली खाँ की धार्मिक सहिष्णुता का प्रमाण है ।
वास्तव में देखा जाए तो 1742 से लेकर 1865 ईसवी तक का कार्यकाल बड़ा लंबा और 123 वर्ष का रहा। यह रामपुर रियासत में अंधकार में डूबा हुआ शासनकाल ही कहा जा सकता है। 1742 में कठेर साम्राज्य का अंत होकर रुहेला सल्तनत की स्थापना हुई और “कठेर खंड” के स्थान पर रूहेलखंड का एक नया युग आरंभ हो गया। रामपुर इस दृष्टि से दुर्भाग्यपूर्ण माना जाएगा कि उसे वर्षों तक पूजा के अधिकार से वंचित रखा गया । यह तो नवाब कल्बे अली खाँ जैसा उदार शासक वंश – परंपरा के अंतर्गत रियासत की गद्दी पर आसीन हो गया और रामपुर को पहला सार्वजनिक मंदिर पंडित दत्तराम के शिवालय के रूप में प्राप्त हो गया। रामपुर में मंदिर नदारद थे , यह बात इसी तथ्य से पता लग सकती है कि राजद्वारा के समीप जिस गली में पंडित दत्तराम का शिवालय स्थापित हुआ ,उस गली का नाम ही “मंदिरवाली गली” पड़ गया अर्थात वह गली जिसमें मंदिर है ।.यानी वह रामपुर जिसमें न केवल राजद्वारा अपितु कूँचा परमेश्वरी दास, पीपल टोला और चाह इंछाराम आदि मौहल्ले राजद्वारा के इर्द-गिर्द फैले हुए थे ,उसमें भी कोई मंदिर निश्चित रूप से नहीं होगा क्योंकि अगर ऐसा होता तो किसी एक गली में मंदिर होने मात्र से उसे मंदिरवाली गली नहीं कहा जाता।
नवाब कल्बे अली खान ने जब मंदिर बनाने का निर्णय लिया तब उन्हें भी रियासत के एक वर्ग के विरोध का सामना करना पड़ा । वह लोग इस निर्णय से खुश नहीं थे लेकिन नवाब कल्बे अली खान की धार्मिक सहिष्णुता के प्रति दृढ़ता के कारण उनका विरोध नहीं चल पाया । मंदिर की नींव में सोने की ईंट खुद नवाब कल्बे अली खान के हाथ से रखी गई थी , ऐसा माना जाता है। (चंद गजलियात रघुनंदन किशोर शौक: प्रकाशक नरेंद्र किशोर इब्ने शौक 1987 ईस्वी पृष्ठ छह)
नवाब कल्बे अली खाँ के ही कार्यकाल में रामपुर निवासी राजकवि बलदेव दास चौबे ने नवाब साहब के आग्रह पर 13 वीं शताब्दी के फारसी भाषा के प्रसिद्ध कवि शेख सादी की पुस्तक “करीमा” का ब्रज भाषा हिंदी में अनुवाद किया था और इसे दोहे तथा चौपाइयों के रूप में “नीति प्रकाश” नाम से 1873 ईस्वी में “बरेली रोहिलखंड लिटरेरी सोसायटी” की प्रेस से प्रकाशित किया गया था । यह प्रवृत्ति न केवल हिंदी और फारसी के आपसी मेलजोल को बढ़ाने वाली दृष्टि को दर्शा रही है बल्कि एक नया दृष्टिकोण जो धार्मिक सहिष्णुता के संबंध में नवाब कल्बे अली खान की थी, उसकी ओर भी इंगित कर रही है ।
नवाब कल्बे अली खान की उदारता पूर्वक दृष्टि का दौर ज्यादा लंबा नहीं चला । भुक्तभोगियों का मानना था कि नवाब हामिद अली खान का दौर निरंकुशता का दौर था । इस दौर में रामपुर में अत्यंत विपरीत परिस्थितियाँ सर्वसाधारण शांतिप्रिय जनता के लिए उपस्थित रहती थीं। स्वर्गीय डॉक्टर ईश्वर शरण के शब्दों में कहूँ तो” उन दिनों चंदौसी जाना और आना भी कम जोखिम भरा नहीं रहता था । रामपुर के रेलवे स्टेशन पर रात्रि 9:00 बजे मेल ट्रेन पर चढ़ने के लिए साँझ ढलने से पहले ही पहुँच जाते थे । वस्तुतः नवाब हामिद अली का का शासनकाल जंगल का कानून था और तब रामपुर में कहीं कोई सुरक्षित नहीं था।” (पृष्ठ 76 रामपुर के रत्न)
युग बदला और रामपुर के अंतिम शासक नवाब रजा अली खाँ ने राष्ट्रपिता की समाधि रामपुर में निर्मित करके देशभक्ति का वातावरण निर्मित किया। कई हजार हिंदू शरणार्थियों को भारत-विभाजन के पश्चात रामपुर में उदारता पूर्वक शरण दी । अब न राजा रहे और न नवाब रहे । अब प्रजातंत्र है और रामपुर सारे भारत में परस्पर भाईचारे की एक मिसाल के रूप में देखा जाता है।
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संदर्भ 1 : रामपुर रजा लाइब्रेरी फेसबुक पेज 3 अप्रैल 2020 लेखक सय्यद नावेद कैसर शाह
संदर्भ 2 रामपुर का इतिहास लेखक शौकत अली खाँ एडवोकेट पृष्ठ 33
संदर्भ 3: रामपुर का इतिहास लेखक शौकत अली खाँ एडवोकेट पृष्ठ 34
संदर्भ 4 :रामपुर का इतिहास प्रष्ठ 29
संदर्भ 5 : रामपुर रजा लाइब्रेरी फेसबुक पेज 3 अप्रैल 2020 लेखक सय्यद नावेद कैसर शाह
संदर्भ 6: रामपुर रजा लाइब्रेरी फेसबुक पेज 7 अप्रैल 2020 प्रस्तुति सनम अली खान एवं निदा फरहीन
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लेखक : रवि प्रकाश , _बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)_
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