राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास
जैसा कि आप सभी को विदित है कि तिरंगा हमारे देश का राष्ट्रीय ध्वज है जिसको हर राष्ट्रीय दिवस पर फहराया या ध्वजारोहण किया जाता है। तिरंगे का आज जो स्वरूप आप देख रहे हैं वैसा पहले नहीं था इस के रूप में परिवर्तन होता रहा इसके पीछे काफी लंबा इतिहास है। इसके बनाने में किसका हाथ रहा होगा शायद ही कुछ लोगों को पता हो। इस वर्ष हम स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे करने जा रहे हैं और यह वर्ष अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है ऐसे शुभ अवसर पर इसका इतिहास जानना बहुत जरूरी हो जाता है। राष्ट्रीय ध्वज या तिरंगा हमारे देश का सम्मान और स्वतंत्र राष्ट्र का प्रतीक है वैसे सभी देशों के अपने-अपने राष्ट्रध्वज हैं जिसको देखकर उस देश की पहचान की जाती है। इसी तरह तिरंगे से हमारे भारत देश की पहचान है जब कभी हमारे देश की कोई राष्ट्रीय टीम बाहर दूसरे देशों में जाती है या खेलने के लिए जाती है तब भी तिरंगा झंडा हमारा राष्ट्रीय ध्वज उनके साथ जाता है।
भारतीय भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की कल्पना पिंगली वैकेया जी ने की थी और इसके वर्तमान स्वरूप को 22 जुलाई सन 1947 को संविधान की विधान सभा बैठक के दौरान इस विषय पर वार्तालाप किया गया।
15 अगस्त 1947 अंग्रेजों से भारतीय स्वतंत्रा के कुछ दिन पूर्व ही इस विधान सभा से इसको स्वीकृति मिल गई थी ।पहले इसे 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजो से भारत को स्वतंत्रता मिलने पर फहराया गया। बाद में 26 जनवरी 1950 को इसे भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया। जब हमारा देश गणतंत्र देश बना।
तिरंगे का निर्माण करने वाले व्यक्ति का नाम था पिंगली वैकेया था जिनका जन्म 2अगस्त सन 1876 में आंध्रप्रदेश के मछलीपट्टनम के समीप एक गांव में हुआ था। अभी 2 अगस्त को उनकी 146 वा जन्म दिवस मनाया गया जिसमे माननीय प्रधान मंत्री श्री मोदी जी उनके परिवार को सम्मानित किया। 19 साल की उम्र में वैंकेया जी ब्रिटिश आर्मी ज्वाइन कर ली थी। बाद में दक्षिण अफ्रीका में एंग्लो बोअर के युद्ध के दौरान उनकी महात्मा गांधी जी से मुलाकात हुई।इस मुलाकात ने उनके जीवन में एक परिवर्तन ला दिया और वे स्वदेश लौट आए।उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आजादी के लिए आवाज उठाई। स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने बढ चढ़कर हिस्सा लिया।जब उन्होंने तिरंगे का निर्माण किया तब उनकी उम्र केवल 45 वर्ष की थी।
तिरंगे को भारतीय ध्वज के रूप में मान्यता मिलने में करीब 45 वर्ष लग गए। चरखे की जगह अशोक चक्र को स्थान दिया गया।
सन् 1925 में इस ध्वज में केवल दो ही रंग थे एक हरा और दूसरा लाल जिसमे चरखे की आकृति को लाइनों द्वारा बनाई गई थी। बाद में 1931 में इस ध्वज में तीन रंग हो गए। सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद तथा आखिर में हरा रंग। बीच सफेद रंग में बने लाइनों वाले चरखे को गांधी जी वाले चरखे की आकृति बनाई गई। बाद में सन 1947 में इसके स्थान पर अशोक चक्र बनाया गया जो वर्तमान में हमारा राष्ट्रीय ध्वज है। इस अशोक चक्र में चौबीस तीलियां हैं। जो मनुष्य के चौबीस गुणों का दर्शाता है जिसमें एक गुण धर्म भी है।एक राष्ट्रीय ध्वज केसरिया रंग देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है । बीच में सफेद रंग अशोक चक्र शांति सत्य व धर्म का प्रतीक है और नीचे हरा रंग देश की खुशहाली और यहां की भूमि के हरा भरा दर्शाता है।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम