रामायण भाग-2
क्रमश: आगे…
हुए जो सोलह बरस के राम जी।
धूम मची थी उनके ही नाम की।।
विश्वमित्रजी जब महल को आए।
आश्रम की राम से रक्षा करवाने।।
असुर ताड़का सुबाहू का भय था।
हर हृदय में ही उनका ही डर था।।
सुनकर विश्वामित्र की ये कहानी।
करने को वध राक्षसों की ठानी।।
गुरु वशिष्ठ का आशीर्वाद लेकर।
ललकारा सभी को हुंकार देकर।।
कैसे असुर टिकते राम के आगे।
देख कर रण कौशल सब भागे।।
ताड़का , सुबाहू का वध किया।
सबको ही ऐसे भय मुक्त किया।।
मरीज को मार कर दूर भगाया।
आश्रम असुरों से मुक्त कराया।।
यूं आसुरों को पापों से मुक्ति दी।
सहज जीवन जीने की युक्ति दी।।
लो आई बारी जनकदुलारी की।
देवी रूप में थी जो राजकुमारी।।
जनक नरेश की थी दुनिया सारी।
जो जग में सीता मैय्या कहलाई।।
जनक नरेश ने धनुष यज्ञ रचाया।
हर ओर ही आमंत्रण भिजवाया।।
ये था सीता विवाह का स्वयंवर।
इसमें मिलना था सीता को वर।।
मिली अहिल्या मूर्त रूप पथ में।
जो थी श्रापित गौतम के तपसे।।
राम स्पर्श से मूर्त स्त्री रूप हुआ।
अहिल्या को यूं था मोक्ष मिला।।
विश्वा,लखन संग पहुंचे श्रीराम।
सबसे मिला तीनों को सम्मान।।
शर्त स्वयंवर शिव धनुष उठाना।
उसपे फिर था डोर को चढ़ाना।।
सबने उठाने का प्रयत्न किया।
थोड़ा सा ना शिव धनुष हिला।।
अब थी बारी आई श्री राम की।
कपलों पे मंद मंद मुस्कान थी।।
स्पर्श मात्र भगवान श्रीराम के।
धनुष के दो खंड किए राम ने।।
इससे क्रोधित हुए परशुराम थे।
जो विष्णु के छठवे अवतार थे।।
लक्ष्मण परशुराम में वाद हुआ।
कुछ क्षण बाद सब शांत हुआ।।
सीता राम ने वरमाला पहनाई।
जनक से सीता जी हुई परायी।।
राम जीवन में सीता जी आयी।
प्रसन्न हुई फिर यूं दुनियां सारी।।
क्रमश…
ताज मोहम्मद
लखनऊ