Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Jul 2021 · 5 min read

सखी

खेदारू के बिआह फूला संघे बड़ी धूमधाम से भइल। बिदाई के बेरा फूला के माई-बाप, भाई-भउजाई, चाचा-चाची सभे उदास रहे। फूला के सखी चमेलियो कम उदास ना रहली, बाकिर केहू का करित, बेटी के त एक दिन बहुरिया बनहिं के परेला। फूला के अकवारी में भर के चमेली एतना लोर बहवली कि भादवो सरमा गइल। भदवारी में त बरखा के बाद आसमान साफ हो जाला, बाकिर चमेली के आँखियन से ना बरखा ओरात रहे ना बादर।
बिदाई भइल, नवसे आ उनके घर के सभे बहुत निहाल रहे। येने कार में बहुरिया के साथे नवसे प्रेम रस में नहात रहलन, त ओने घर के मेहरारू समाज बहुरिया के इन्तजार में नाचत गावत रहे।
बाकिर भगवान जी के मरज़ी के का कहल जा! ऊहाँ के त कुछ अउरिए मंजूर रहे! बड़ी जोर आन्ही आइल, सड़क के दूनू बगल रहे बड़े बड़े पेड़, बीचे बीचे निकसत रहे बरातिन के काफिला। अचानक एगो पेड़ गिरल, टेक्सी में बइठल खेदारू के बाबू जी घाही हो गइलन। अब का होखो सभे उनके ले के अस्पताल पहुँचल।
डाक्टर कहलन कि “गहीर चोट लागल बा, आपरेशन करे के पड़ी कम से कम पचास हजार के इन्तजाम करीं लोगिन।”
घरे त फूटल कउड़ी ना रहे, कहाँ से आइत पचास हजार! बड़ी धावला के बाद नेउर सेठ बियाज पर रूपया देबे के तइयार हो गइलन।
शंकर के चीर-फार, दवा-दारू भइल, कुछ दिन में ऊ त ठीक हो गइलन। बाकिर पचास हजार के करजा कवनो रोग से कम त ना रहे। खेदारू बेचारू का करतें! किरिया खा लिहलन कि ” जबले हम करजा ना चुकाइब अपना मेहरारू से देहिं ना छुआइब।”
खेदारू कमाये दिल्ली जात रहलन, उनकर मेहरारू बहुते उदास रहली। करिया बादर घेरले होखे, धान पानी बिन सूखत होखे, आन्ही आवे आ बादर उधिआ जा, बुनियो ना परे त डरेरा पर आस में बइठल किसान के जइसल बुझाला, कुछ अइसने बुझाईल फूला के। उनकी अँखियन से लोर झरे लागल।
खेदारू के जाते फूला के रोज ताना मिले लागल। “ये कुलच्छनी के आवते घर भिला गइल। ई मरियो जाइत त करेजा जुड़ाइत।” अउरियो का जाने कवन कवन ताना सुत-उठ के मिले, बाकि फूला ये कान से सुनस आ ओ कान से निकाल देस। कबो हिया में ना जोगावस कवनो बाति।
खेदारू वैल्डिंग के काम सीख लीहले रहलन। महीना में दस-एगारे हजार बनिये जात रहे, हर महीना एक-दू हजार भेजियो देत रहलन। एहीतरे तीन साल बीत गइल।
खेदारू नगदे पइसा कमा लिहलें रहलन। सोचलें “अब घरे चले के चाहीं, आखिर बिअजियो त बढ़ते जाता। आ फूला! ऊ त हमके एको छन ना बिसारत होइहन, हमके देखते केतना निहाल हो जइहें।”
खेदारू सब समान सरिअवलें आ भिनसारे वाला गाड़ी पकड़ लिहलन, बाकिर ऊ का जानत रहलन कि उनका पीछे एगो हरीफ लागल बा। खेदारू हरिफवा के बड़ा सरीफ समझलन आ अपना लगे बइठा लिहलन।
“ये भाई! कहाँ जायेक बा? आ तहार नाव का ह?”
“जायेक बा सिसवनिया आ नाव ह खेदारू। तू कहाँ जइबअ?”
“हमरो त ओनहे चले के बाटे, बाकिर हम गोरखपुरवे में उतर जायेब।”
“बड़ा संजोग ठीक बा ये भाई! कि हमनी के एके ओर जाये के बाटे। ई अलग बात बा कि तू गोरखपुरवे में उतर जइबअ बाकिर उहाँ ले त नीफिकिर हो के चलल जाई। टरेन में चोर-चाइन से बड़ा डर लागेला।”
हरिफवा के त गोटी चम रहे, झट से कहलस “खइनी चलेला भाई?”
“चलेला बाकिर एह बेरा बा नाहीं, अपने लगे से खिआ द।”
हरिफवा खइनी बनवलस, दूनू जानी खाइल लो। उ खइनिया में का जाने का मिला दिहले रहे कि खेदारू अचेत हो गइलन। बाकिर ओकरा कुछउ ना भइल, ओकरा आदत जे रहे चरस खइला के।
हरिफवा त खुश हो गइल, झट से अटइची बदल दिहलस, काहें कि अटइचिया एकदम एके लेखाँ रहे। जब खेदारू के होश आइल त हरिफवा उतर गइल रहे। उनका येह बाति के तनिको शंका ना भइल कि अटइची बदला गइल बा।
खेदारू घरे पहुँचलन त नेउर सेठ तगादा करे आइल रहलन। खेदारू के देखते बोल परलन “का हो शंकर! तहार बेटा त आ गइल कमा के! अब त मिल जाई हमार पइसा!”
“काहें नाहीं मिली? तीन साल बाद कमा के आइल बाड़न, कुछ त ले आइले होइहन!”
“कवनो चिन्ता कइला के गरज नइखे बाबू जी! हम सब इन्तजाम क के आइल बानी।” खेदारू पहिले पाँव छुवलन फेरू मुँह खोललन।
सेठ हिसाब जोरलन त एक लाख से उपरे आइल। खेदारू घर में जा के अटइची खोललन त ओइमें किताब-कापी रहे, पइसा त रहबे ना कइल। खेदारू समझ गइलन कि अटइची बदला गइल बा। अब का होखो, सभे कपारे हाथ ध लिहल। कइसे मिली भिलाइल अटइची! का जाने मुसाफ़िर ईमानदार रहे कि चाई! एके साथे कई गो सवाल गूँजे लागल खेदारू के दिमाग में। बाकिर ई सोच के कि “मेहनत के कमाई ह केहू हजम ना क पाई।” खेदारू सेठ से कह दिहलन कि “राउर पइसा बिहने मिल जाई, अटइची बदला गइल बा, हम पता करे जात बानी, रउवा बिहने आ जाइब।” सेठ ई कहि के चल गइलन कि “बिहने अगर पइसा ना मिली त हम तहार दखिन वाला खेत जोतवा लेब।”
“आज का चोरा के ले आइल बानी, रउवा लाज ना लागेला, हेइसन देहि ले के रोज चोरी करीले। कहिया ले खिआयेब हमके पाप के कमाई?”
“अरे चमेली चोरियो करे में मेहनत लागेला, बुद्धी खपावे के परेला, पसेना झारे के परेला। आज के जमाना में चोरी कइल कवनों पाप नइखे रह गइल। ये घरी त नेता, अधिकारी, सिपाही सभे चोरा रहल बा।”
“बाकिर हम रउवा के ना करे देब। आज से पाप के कमाई खाइल बन्द। रउवा मेहनत से कुछऊ कमा के ले आयेब त उ खइला से देहियो प हेरा चढ़ी आ मनवो खुश रही। जाईं हइ अटइची लौटा के आईं।”
“हम ना लौटा सकीले चोरावल माल।”
“त ठीक बा, मत जाईं। हमहीं जा तानी कहीं ढूब-धस के मर जायेब।”
“का अनाब-सनाब बोलत रहेलू! कवनो पता ठेकान रही तबे नूँ केहू लौटाई!”
चमेली अटइची खोलली त लाखन रूपिया आ खेदारू संघे फूला के फोटो देख के चिहा गइली! “अरे! ई त सखी के अटइची ह!”
“कवन सखी!”
“अरे उहे! जीनके ससूर के एक्सीडेंट हो गइल रहे, ओइदिने जहिया उनकर बिदाई रहे। उनके ससूर के दवाई में ढेर करजा हो गइल रहे, आ खेदारू कसम खइले रहलें कि जबले उ करजा ना चुकइहें तबले अपना मेहरारू से देहिं ना छुअइहें।”
“अच्छा ऊ! जब तहार खुशी येही में बा, त चलअ रूपिया लौटा आइल जा। अब तहरा खुशी से बढ़ के रूपिया नइखे नू!”
चमेली आ मोहन पइसा ले के खेदारू घरे पहुँच गइल लो। खेदारूओ जब पता ना लगा पवलें त हार-पाछ के घरे आ गइलन। घरे मोहन के बइठल देखलें त उनके जीव में जीव परल। फूला से कवनो मेहरारू हँस हँस के बतिआवत रहे आ उनके बाबू जी से मोहन। खेदारू लगे आ गइलन “का हो तू आ गइलअ!”
“हँ ये खेदारू भाई! हमार मेहरारूओ आइल बाड़ी, तहरा औरत के सखी। हमनी के तहार रूपिया लौटावे आइल बानी जान। हमरा से बहुत बड़हन गलती हो गइल। हो सकी त माफ क दिहअ। अब ल हई आपन अमानत! मोहन अटइची खेदारू के दे दिहलन। नेउरो सेठ भनक पा के आ गइलन। सभे एके जघे खड़ा रहे। खेदारू, सेठ के हिसाब दे के करजा से आजाद हो गइलन। नेउर सेठ जाये लगलन त सभे सेठ के ओर देखत रहे। बाकिर खेदारू के ध्यान त फूला पर रहे, उ फूला के गाल पर चिकोटी काट दिहलन, फूला सुसकरली त सभे ताक दिहल। दूनू जाने लजा गइल लो, सब केहू हँस दिहल।

– आकाश महेशपुरी

5 Likes · 677 Views

You may also like these posts

बस्ती  है  मुझमें, तेरी जान भी तो,
बस्ती है मुझमें, तेरी जान भी तो,
Dr fauzia Naseem shad
वह नारी
वह नारी
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
तुमने सोचा तो होगा,
तुमने सोचा तो होगा,
Rituraj shivem verma
*चेहरे की मुस्कान*
*चेहरे की मुस्कान*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
जन्मजात जो है गरीब तो क्या?
जन्मजात जो है गरीब तो क्या?
Sanjay ' शून्य'
मिला क्या है
मिला क्या है
surenderpal vaidya
ज़ख्म मिले तितलियों से
ज़ख्म मिले तितलियों से
अरशद रसूल बदायूंनी
नज़्म
नज़्म
सुरेखा कादियान 'सृजना'
प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
Dr. Pradeep Kumar Sharma
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Mamta Rani
चांद देखा
चांद देखा
goutam shaw
कठिनाइयाँ डरा रही है
कठिनाइयाँ डरा रही है
लक्ष्मी सिंह
शब्द की महिमा
शब्द की महिमा
ललकार भारद्वाज
यदि आप स्वयं के हिसाब से परिस्थिती चाहते हैं फिर आपको सही गल
यदि आप स्वयं के हिसाब से परिस्थिती चाहते हैं फिर आपको सही गल
Ravikesh Jha
अतीत की कुछ घटनाएं भविष्य का भी सब कुछ बर्बाद कर देती हैं, म
अतीत की कुछ घटनाएं भविष्य का भी सब कुछ बर्बाद कर देती हैं, म
Ritesh Deo
मेरी प्रिया *********** आ़ॅंसू या सखी
मेरी प्रिया *********** आ़ॅंसू या सखी
guru saxena
*याद तुम्हारी*
*याद तुम्हारी*
Poonam Matia
"जन्मदिन"
ओसमणी साहू 'ओश'
***किस दिल की दीवार पे…***
***किस दिल की दीवार पे…***
sushil sarna
जन्म से
जन्म से
Santosh Shrivastava
Home Sweet Home!
Home Sweet Home!
R. H. SRIDEVI
जिंदगी का सफ़र
जिंदगी का सफ़र
Shubham Anand Manmeet
2122 1212 22112
2122 1212 22112
SZUBAIR KHAN KHAN
जो अपने दिल पे मोहब्बत के दाग़ रखता है।
जो अपने दिल पे मोहब्बत के दाग़ रखता है।
Dr Tabassum Jahan
समस्त महामानवों को आज प्रथम
समस्त महामानवों को आज प्रथम "भड़ास (खोखले ज्ञान) दिवस" की धृष
*प्रणय*
କୁଟୀର ଘର
କୁଟୀର ଘର
Otteri Selvakumar
सपनों की धुंधली यादें
सपनों की धुंधली यादें
C S Santoshi
हँसते हैं, पर दिखाते नहीं हम,
हँसते हैं, पर दिखाते नहीं हम,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
भारत अध्यात्म का विज्ञान
भारत अध्यात्म का विज्ञान
Rj Anand Prajapati
"प्यासा"के गजल
Vijay kumar Pandey
Loading...