#रामपुर_के_इतिहास_का_स्वर्णिम_पृष्ठ :
#रामपुर_के_इतिहास_का_स्वर्णिम_पृष्ठ :
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#श्री_सुन्दर_लाल_जी_की_स्मृति_में_सुन्दर_लाल_इंटर_कॉलेज_का_शुभारंभ
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परोपकार की भावना से श्री राम प्रकाश सर्राफ ने 1956 में रामपुर उत्तर प्रदेश में सुंदर लाल इंटर कॉलेज की स्थापना की थी। इस अवसर पर संघ प्रमुख श्री गुरु जी, भारत रत्न श्री नानाजी देशमुख, भारत रत्न राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन तथा संगीतविद् आचार्य बृहस्पति के व्यक्तिगत आत्मीयता से भरे शुभकामना संदेश प्राप्त हुए थे।
.#19_जनवरी_1956 को श्री सुन्दर लाल जी का देहावसान हुआ था । श्री राम प्रकाश सर्राफ के लिए यह एक अपूरणीय क्षति थी। सुन्दर लाल जी उनके सर्वस्व थे ।उन्हीं की गोद में उन्होंने जीवन के सारे पाठ सीखे थे। अब उनके न रहने पर उनको जो दुख हुआ, उसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है।
सुन्दर लाल जी से राम प्रकाश जी का वैसे तो रिश्ता क्या था ! वह उनके नाना थे । …बल्कि नाना के बड़े भाई थे । औपचारिक रूप से गोद भी नहीं लिया था , जो हम विधिवत रूप से उन्हें उनका दत्तक पुत्र कह सकें । बस छोटी सी अवस्था में ही बालक राम प्रकाश को गोद में लेकर नानी गिंदौड़ी देवी के हाथों में सौंप दिया था और स्वयं संरक्षक की भूमिका स्वीकार कर ली। इस प्रेम को जो परिभाषाओं से परे है ,कैसे व्यक्त किया जा सकता है ?
सुन्दरलाल जी के वियोग से जो व्यथा राम प्रकाश जी को हुई ,उसकी पीड़ा का हम उस पत्र से अनुमान लगा सकते हैं जो उन्होंने श्री सुन्दरलाल जी के देहांत के 5 दिन बाद अर्थात 24 जनवरी 1956 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री गुरुजी के नाम से प्रसिद्ध श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी को लिखा था । गुरु जी ने उस पत्र का जो उत्तर दिया उससे पता चलता है कि राम प्रकाश जी का लिखा हुआ पत्र कितनी पीड़ा से भरा होगा । ऐसा जान पड़ता है कि एक शिष्य ने अपने गुरु के सामने अपने हृदय की गहराइयों में उपस्थित सारी पीड़ा को व्यक्त कर दिया और गुरु ने भी शिष्य को सांत्वना का असाधारण संदेश दिया।
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श्री गुरु जी का सांत्वना पत्र
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पत्र क्रमांक 379 //दिनांक 6 -3-56
परम मित्र श्री राम प्रकाश जी
सप्रेम वंदे
आपका 24- 1-56 का पत्र 30- 1-56 को यहाँ मिला। विलम्ब का पता नहीं चला । मैं उसी दिन प्रातः यहां से दक्षिण में पट्टाम्म्बी नामक स्थान में उपचारार्थ जाने के लिए चल पड़ा था । एक मास वहां रहकर 2- 3-56 को लौट आया। पत्र देखते देखते आपका यह पत्र पढ़ा । आपके अंतःकरण की व्यथा से हृदय में बहुत दुख का अनुभव हुआ। परंतु आपने शोक का संवरण करना उचित है। जन्म के साथ ही मृत्यु लगी हुई है । आपका भाग्य था कि उनके प्रेमभाजन बनकर आपने उनकी छत्रछाया में सुख का लाभ किया। इसका स्मरण रख अपने व्यवहार से अनेक लोगों को अपने स्नेह से भरकर उनकी प्रेममयी स्मृति को प्रसारित करते रहना ही योग्य होगा। भूतकाल की स्मृति में शोकाकुल न होते हुए भविष्य का आधार वर्तमान उस स्मृति के पुनीत प्रकाश में उज्ज्वल करना यही आवश्यक कर्तव्य है । सौभाग्य से संघ जैसे स्नेहमय कार्य में कुछ दायित्व पूरा करने का अवसर आपको प्राप्त है। इसमें सर्व शक्ति लगाकर निरपेक्ष स्नेह की धारा बहाना यही उत्तम होगा। इसी में अंतः करण कार्यरूप होने के कारण शांति का अनुभव कर सकेगा ।
और क्या लिखूँ ? आपके शोकग्रस्त परिवार को मनः शांति श्री परमात्मा की कृपा से प्राप्त हो, यही उसके पवित्र पद कमलों में प्रार्थना करता हूँ।
शेष यथापूर्व है। मैं 10- 3-56 से प्रवास के लिए चल पड़ूंगा। कानपुर में 17 ,18-3-56 को रहने की योजना बनी है ।आपको भी पता लगा ही होगा। सर्व स्वयंसेवक बंधुओं को यथा योग्य स्नेह नमस्कार।
आपका
मा.स.गोलवलकर
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जुलाई 1956 में सुन्दरलाल इंटर कॉलेज आरंभ हो गया । राम प्रकाश जी ने अपने घर के नजदीक (बाजार सर्राफा मिस्टन गंज के निकट) लंगर खाने की गली में एक जमीन खरीदी और उस पर” गिंदौड़ी भवन ” का निर्माण कराकर विद्यालय शुरू कर दिया। सुन्दरलाल इंटर कॉलेज का आरंभ कक्षा 6 से हुआ तथा प्रतिवर्ष एक-एक कक्षा बढ़ती गई । इस तरह विद्यालय प्रारंभ में जूनियर हाई स्कूल तत्पश्चात हाई स्कूल और उसके बाद शीघ्र ही इंटर कॉलेज में परिवर्तित हो गया।
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श्री गुरू जी का शुभकामना पत्र
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विद्यालय के शुभारंभ पर श्री गुरु जी का शुभकामना संदेश प्राप्त हुआ था । श्री गुरु जी से राम प्रकाश जी की निकटता इस नाते गहरी थी कि राम प्रकाश जी स्वतंत्रता पूर्व से ही संघ की शाखा में सक्रिय थे। पत्र इस प्रकार है:- पत्र क्रमांक 784 दिनांक 14- 7 -56
परम मित्र श्री राम प्रकाश जी
सप्रेम वंदे
आपका पत्र कल मिला। आपके संकल्प से बहुत प्रसन्नता हुई। परमात्मा की कृपा से आप सफल हों। योग्य प्रकार से नूतन विद्यालय का संचालन कर उससे दृढ़ चरित्रवान राष्ट्रभक्त निःःस्वार्थी युवक विद्या विभूषित होकर राष्ट्र सेवार्थ प्रस्तुत हों।
अभी चल रही केंद्रीय कार्यकारी मंडल की बैठक के कारण व्यस्त हूँ।अतः इतना ही लिख सका। अधिक लिखने की आवश्यकता भी नहीं।
आपका
मा. स. गोलवलकर
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श्री नानाजी देशमुख का पत्र
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एक संदेश श्री नानाजी देशमुख का आया । श्री नानाजी देशमुख उस समय जनसंघ के संगठन का कार्य देखते थे तथा रामपुर उनके क्षेत्र में आता था। रामप्रकाश जी से उनका न केवल पत्र व्यवहार चलता रहता था अपितु बड़े गहरे संबंध रहे । बाद में मरणोपरांत श्री नानाजी देशमुख को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। पत्र इस प्रकार है-
लखनऊ 12-7-56
परम मित्र श्री राम प्रकाश जी
सप्रेम नमस्कार। आपका कई दिनों के पश्चात एक पत्र मिला । आप अपने नाना जी की पुण्य स्मृति में एक विद्या मंदिर का निर्माण कर रहे हैं ,यह जानकर मुझे अतीव प्रसन्नता हुई । यह अपने पवित्र परंपरा के अनुकूल प्रशंसनीय कार्य है । इसमें अपने पूर्वजों के प्रति प्रकट होने वाली असीम श्रद्धा एवं समाज के प्रति हृदय में अनुभव होने वाली कर्तव्य दक्षता ही प्रकट होती है। ऐसे सद्भावना युक्त कार्य की जितनी सराहना की जाए थोड़ी ही है। मेरा विश्वास है कि स्वर्गीय पूज्य नाना जी का शुभ आशीर्वाद आपके इस प्रयास को पूर्ण सफल बनाएगा एवं इस विद्या मंदिर में पढ़ाने वाले योग्य शिक्षक एवं पढ़ने वाले विद्यार्थी उनके आपसी पुण्य संयोग के कारण आपको हृदय से धन्यवाद देकर आपके विद्या मंदिर के कीर्ति को शिक्षा क्षेत्र में आदर्श स्थान प्राप्त करा देंगे। इन शुभ आकांक्षाओं सहित आपका
स्नेहांकित
नाना देशमुख
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श्री आचार्य बृहस्पति का पत्र
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एक पत्र श्री आचार्य बृहस्पति का है। संगीत के क्षेत्र में आपका बहुत ऊंचा स्थान है ।आपने “बृहस्पति वीणा” की रचना की थी और संगीत के प्रैक्टिकल तथा शास्त्रीय पक्ष दोनों में विद्वत्ता प्राप्त करते हुए अपनी प्रतिभा का लोहा अखिल भारतीय स्तर पर मनवाया था ।ऑल इंडिया रेडियो के चीफ एडवाइजर के तौर पर 12 वर्ष का आपका कार्यकाल उल्लेखनीय रहा है ।आप रामपुर के मूल निवासी थे। पत्र इस प्रकार है
कानपुर 11-7-56
प्रिय राम प्रकाश जी
शुभाशीषः । पत्र अभी अभी मिला। अपने स्वर्गीय नाना जी की पुण्य स्मृति में जूनियर हाई स्कूल की स्थापना करके आप एक मंगल कार्य कर रहे हैं। हम रामपुर निवासी शिक्षा के संबंध में पूर्णतया शासन का मुंह जोहने के अभ्यस्त रहे हैं ।ऐसी स्थिति में आपका यह पुण्य प्रयास रामपुर के अन्य विशिष्ट नागरिकों के लिए भी अनुकरणीय है । स्कूल अनुदिन उन्नति करे, यह मेरी शुभकामना है। आपकी संस्था के हित में प्रत्येक उचित कार्य करने के लिए मैं दृढ़ संकल्प हूँ।
आशीर्वादक
बृहस्पति
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राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन का पत्र
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भारत रत्न से सम्मानित राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन को कौन नहीं जानता । सबसे बढ़कर आपने हिंदी की अपार सेवा की और हिंदी का पक्ष राष्ट्रभाषा के तौर पर लिया ,उसके कारण सदैव आपको स्मरण किया जाता रहेगा। सुन्दरलाल जी की स्मृति में विद्यालय खोले जाने पर बहुत सुंदर विचारों के साथ आपका पत्र भी उल्लेखनीय है। पत्र इस प्रकार है :-
2 टेलिग्राफ लेन, नई दिल्ली 17 -7-56
भाई राम प्रकाश सर्राफ जी
नमस्कार । आपका दिनांक 10 का पत्र मुझे आज यहां मिला है। सुन्दरलाल जूनियर हाई स्कूल की स्थापना पर आपको बधाई देता हूँ। स्कूल अच्छे प्रबंध में रहकर और चरित्रवान अध्यापकों द्वारा संचालित होकर उपयोगी कार्य करे, यह मेरी कामना है।
शुभैषी
पुरुषोत्तम दास टंडन
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इस प्रकार नि:स्वार्थ सेवा भाव से पवित्र विचारों का आश्रय लेकर एक महान व्यक्ति की स्मृति में, एक महान व्यक्ति के द्वारा, एक महान कार्य का शुभारंभ हुआ।
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राष्ट्रीयकरण की घोषणा:-
*********************** वैसे तो विद्यालयों को शिक्षा का मंदिर आमतौर पर कहने में आता है लेकिन जिन पवित्र भावों के साथ रामप्रकाश जी ने सुन्दरलाल विद्यालय खोला, वह वास्तव में श्री सुन्दरलाल जी की अमूर्त उपस्थिति को उपासना के लिए स्वीकार करते हुए एक मंदिर की तरह ही उनका व्यवहार रहा। इसी का परिणाम यह निकला कि जब सुन्दरलाल इंटर कॉलेज की स्थापना को दो दशक पूरे हुए ,तब 1976 में राम प्रकाश जी ने अपनी जिम्मेदारियों से निवृत्त होने की घोषणा की और कहा कि वह विद्यालय को सरकार को सौंपना चाहते हैं। यह इस बात का द्योतक था कि विद्यालय के साथ उनका कितना नि:स्वार्थ भाव का संबंध था। हालाँकि बाद में जब समस्त अध्यापकों और कर्मचारियों ने यह बताया कि इस समय विद्यालय का राष्ट्रीयकरण अध्यापकों तथा कर्मचारियों के हित में नहीं रहेगा ,तब रामप्रकाश जी ने जैसा अध्यापक और कर्मचारी चाहते थे वैसा ही किया। उनके लिए विद्यालय कोई जमीन- जायदाद पर अधिकार नहीं , अपितु देवता के मंदिर में उपासना के भाव से निर्वहन किया जाने वाला एक कर्तव्य था। उनके सानिध्य में आना स्वयं में एक सौभाग्य था।
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“धन्य सुन्दर लाल”
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सुन्दर लाल इंटर कॉलेज का विद्यालय- गीत “धन्य सुन्दर लाल ” इस प्रकार था:-
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दान विद्यादान से बढ़कर नहीं संसार में
जीव की पतवार है भव सिंधु पारावार में
धन्य सुन्दर लाल तुमने कार्य यह सुन्दर किया
हम बालकों की गोद को विद्या-किरण से भर दिया
आपका भी नाम जग को याद नित आता रहेगा
आपका यश आपका विद्या भवन गाता रहेगा
नित्य विद्या प्रेमियों को ही अमर जीवन दिया
ज्ञान ही वह फूल है जो कंटकों में भी खिला
दान विद्यादान से बढ़कर नहीं संसार में
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संलग्न:-
(1) श्री सुंदरलाल जी की मृत्यु पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री गुरु जी का सांत्वना- पत्र
(2) सुंदर लाल इंटर कालेज के शुभारंभ पर राष्ट्रीय सेवक संघ के सरसंघचालक श्री गुरु जी का शुभकामना पत्र
(3)सुंदर लाल इंटर कॉलेज के शुभारंभ पर जनसंघ नेता श्री नाना जी देशमुख का शुभकामना पत्र
(4) शुभारंभ पर अनन्य हिंदी सेवी राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन का शुभकामना पत्र
(5) संगीत के ख्याति प्राप्त विद्वान श्री आचार्य बृहस्पति का शुभकामना पत्र
(6) 1976 में राम प्रकाश जी द्वारा विद्यालय का राष्ट्रीयकरण करने की घोषणा के उपरांत अध्यापकों और कर्मचारियों द्वारा राष्ट्रीयकरण न करने के आग्रह से संबंधित लिखा गया पत्र
(7) 1962 -63 का ग्रुप फोटो( पृष्ठभूमि में गिंदौड़ी भवन)
(8) श्री सुन्दर लाल जी का ब्लैक एंड व्हाइट चित्र
(9) श्री राम प्रकाश जी का चित्र
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