राधिका ही न क्यों रुक्मणी हो गयी
प्रेम की भावना अधमरी हो गयी
जब जुदा श्याम से साँवरी हो गयी
नींद आँखों से उठकर टहलने लगी
वो भटकती रही बावरी हो गयी
श्याम ने बाँसुरी का बदन जब छुआ
याद राधा की आकर खड़ी हो गयी
थी जो सौतन कभी राधिका के लिए
खोए उसके भी सुर बेसुरी हो गयी
होठ हँसते मगर रो रहा था हृदय
ये मुलाकात क्यों आखिरी हो गयी
थी हकीकत में जो जिन्दगी श्याम की
कल्पना लोक की वो परी हो गयी
था यही प्रश्न मन में सदा श्याम के
राधिका ही न क्यों रुक्मणी हो गयी