उस रात के आँसू
जुलाई का महीना था, विद्यालय खुल चुके थे । मोहन ने अपने गाँव से आठवीं की परीक्षा उत्तरीण करने के बाद शहर में आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए दाखिला लिया था । रहने के लिए एक कमरा देखा था, जिस पर खपरैल चढ़ी हुई थी । मकान मालिक एक वृद्ध दंपत्ति थे, जिनके कोई पुत्र नही था, किन्तु तीन पुत्रियां थी । सभी की शादी हो गई थी, उनमें से बीच वाली पुत्री वृद्ध दंपत्ति के साथ ही रहती थी । जितने भी कमरे किराए से दे रखे थे, उनमें से सबसे जर्जर हालत मोहन के कमरे की थी । मोहन एक गरीब परिवार से था, किन्तु बहुत मेहनती था । यहाँ से मोहन का विद्यालय लगभग 3 कि.मी. दूर था । मोहन रोज -रोज पैदल ही विद्यालय जाता था ।
बारिश का मौसम था हवाएं शाम से ही चलने लगी थी, मौसम ने करवट बदली बारिश शुरू हो गई थी । बीच – बीच में बिजली आ जा रही थी । मोहन अक्सर खाना जल्द ही बना लेता था, आज भी शाम को ही खाना बना लिया था ।
बारिश अब तेज हो गई थी, कमरा जर्जर था,खपरैल में से कुछ फुहार अंदर आ रही थी । मोहन बाहर निकलकर देखता है, बिजली नहीं होने के कारण चहुँओर अंधेरा छाया हुआ था, आसपास के पड़ोसी किरायेदार अपने-अपने घरों में दुबके हुए थे । मकान मालिक की लड़की द्रोपदी लालटेन के उजाले में सिलाई मशीन चला रही थी , जिसकी आवाज मोहन को सुनाई दे रही थी । मोहन फिर से कमरे के अंदर आकर देखता है,अब एक जगह से पानी गिरने लगता है, मोहन अपने बिस्तर एक तरफ , जिधर सूखा था, रख लेता है । बारिश बंद होने का नाम नहीं ले रही थी , उल्टे पानी का गिरना ओर तेज हो जाता है । ऐसे में मोहन को नींद कैसे आए? फिर भी आँख बंद कर मोहन लेट जाता है । बिजली आ जाती है, किन्तु अब उजाले में दिखाई देता है , पूरे कमरे में खपरैल के बीच- बीच मे से पानी गिर रहा था , अब मोहन कहाँ बिस्तर करें, यही वो मासूम बालक सोच रहा था । उसके माता-पिता तो गाँव पर रहते थे, जो शहर से 50 कि. मी दूर थे । अकेला मोहन किससे कहें ? कहाँ सोए? बारिश कब बंद होगी? बिजली फिर चली गई तो? ऐसे अनेक प्रश्न उसके मन में पानी के बुलबुलों की तरह उठ रहे थे । एक बार फिर मोहन बाहर आकर देखता है, इस बार द्रोपदी दीदी भी सिलाई बंद कर शायद सो गई , क्योंकि मशीन की आवाज बंद हो गई थी, किन्तु टीवी की धीमी आवाज आ रही थी ।एक बार मन हुआ कि दीदी से ही बोल दूँ, की यहाँ कमरे में सोने की जगह नहीं है,सब जगह पानी गिर रहा हैं, किन्तु दीदी क्या सोचेंगी, यही सोचता हुआ मोहन फिर से अंदर कमरे में आ जाता है । बिस्तर पर लेट जाता है । पानी की बूंदे कभी चेहरे पर गिरती, कभी हाथों पर, जैसे उसे आज जगा रहीं हो, उठ मोहन देख दुनिया को, यह सोने का समय नहीं है । बारिश आज मोहन की परीक्षा ले रही थी, कैसे सामना करेगा यह चौदह वर्षीय बालक इस काली आषाढ़ की रात का? पानी की बूंदे खपरैल में से अपनी गति उसी प्रकार बढ़ा देती है, जैसे स्टेशन से रेलगाड़ी छूटने पर अपनी गति बढ़ा देती हैं । अब मोहन क्या करें, ऐसे में नींद लग भी नहीं सकती थी, आँखों में आँसू आने को बेताब थे, बस मोहन के एक इशारे का इंतज़ार कर रहे थे । किंतु मोहन अपनी हिम्मत बांधे हुए था,क्योंकि यह परिस्थिति उसके लिए नई नहीं थी, कई बार गाँव पर वह इसका सामना कर चुका था, किन्तु वहाँ वो अकेला नहीं रहता था, उसके माता- पिता और दो बहनें भी साथ रहती थी । आज उसके पास कोई नही था, वह असहाय अकेला था । बाहर भी कहाँ जाए, बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी, बल्कि जैसे – जैसे रात बीतती जाती , पानी तेज होता जाता है । ऐसा लग रहा था , जैसे दोनों के बीच जीतने की एक होड़ लगी हुई हो, और मोहन न्यायाधीश बनकर निर्णय सुनाने के लिए उनको अपलक देख रहा था । अब मोहन के लिए एक – एक पल मुश्किल होता जा रहा था । मोहन के आँसूओ का सब्र टूट चुका था, दो आँसू लुढ़क कर गाल पर आ गए थे । बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की चमक जारी थी ।
“आँखों में आँसू भरे, लगती लंबी रात ।
नभ में बादल गरजते, कैसे यह हालात ।।
मोहन ने अपने मन को ढाँढस बंधाया और बिस्तर के नीचे बिछाने वाली खजूर के पत्तो की बनी हुई चटाई निकाली , उसको ओढ़कर सोने का प्रयास किया । सोचते – सोचते ,डरते – डरते ,वो काली अंधियारी आषाढ़ वाली रात निकली, जो कितनी लंबी थी ।
कुछ- कुछ पाने के लिए,होता है संघर्ष ।
ऐसे ही नहीं मिलता,जीवन में यह हर्ष ।।
(स्मृति पर आधारित)
—-जेपी लववंशी