Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 Oct 2021 · 19 min read

राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय का इतिहास (संस्मरण /लेख)

संस्मरण
?????????
10 दिसंबर 1962 को स्कूलों के लिए छठी जमीन कुँवर लुत्फे अली खाँ से खरीदी : राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय का उदय
?????
कुँवर लुत्फे अली खाँ(कुंडलिया)
आया खुद चलकर कुआँ ,प्यासे ही के पास
धन्य कुँवर लुत्फे अली ,सच का जिनमें वास
सच का जिनमें वास ,भूमि के शुभ विक्रेता
आग्रह से कब कौन ,सोचिए किसको देता
कहते रवि कविराय ,भाव क्रेता का भाया
कलयुग में आश्चर्य , दौर सतयुग का आया
1962 ईस्वी का दिसंबर महीना शुरू होना ही चाहता था । एक दिन कुँवर लुत्फे अली खाँ श्री राम प्रकाश सर्राफ की दुकान पर पधारे और कहा “अपनी एक जमीन बेचना चाहता हूँ। आपके स्कूल के सामने है । उपयोगी है । आप खरीद लेंगे ,तो खुशी होगी ।”
राम प्रकाश जी के लिए यह प्रस्ताव अप्रत्याशित था । स्कूलों के लिए वह पाँच जमीनें खरीद चुके थे । हर बार प्रयत्न की पहल उनकी ओर से ही होती थी। फिर खरीदार से संपर्क करते थे और जमीन का सौदा तय होता था। लेकिन इस बार कुआँ खुद प्यासे के पास आया था और असमंजस की स्थिति यह थी कि खरीदें , न खरीदें ! विद्यालयों की आवश्यकता लगभग पूरी हो चुकी थी । लेकिन “टैगोर स्कूल के सामने” वाली बात में वजन था 1958 में टैगोर शिशु निकेतन शुरू हुआ था और उसके लिए जमीन जितनी राम प्रकाश जी ने खरीदी थी ,वह टैगोर स्कूल के लिए पर्याप्त थी। लेकिन फिर भी कुँवर लुत्फे अली खाँ की बात उनके हृदय में प्रवेश कर रही थी । राम प्रकाश जी को विचार मग्न पाकर कुँवर लुत्फे अली खाँ ने एक बार फिर कहा “किस सोच विचार में पड़े हैं राम प्रकाश जी ! मैं सचमुच दिल से चाहता हूँ कि यह जगह आपके पास चली जाए।”
” मैं भी इसी दिशा में सोच रहा हूँ।”- राम प्रकाश जी का इतना कहना था कि कुँवर लुत्फे अली खाँ ने जवाब दिया ” फिर सोच – विचार किस बात का ? मेरे साथ चलिए । मैं आपको जगह पर एक नजर डलवा दूँ।”
दुकान से उठकर दोनों महानुभाव बाजार सर्राफा ,मिस्टन गंज से पीपल टोला, लंगरखाना गली की ओर प्रस्थान कर गए। दो-चार मिनट का पैदल का रास्ता था । राम प्रकाश जी सारे रास्ते पैसों के इंतजाम के बारे में सोचते रहे । उस जमाने में जमीन सस्ती होती थी । दस-पाँच हजार रुपये में अच्छी – खासी जमीन का सौदा हो जाता था। सोने का भाव एक सौ रुपए था । इस तरह यह एकाध किलो सोने की कीमत बैठती थी । पैसों का इंतजाम कैसे होगा? तुरत – फुरत जमीनों के सौदे होते हैं । नगद रुपए का इंतजाम नहीं था । गिरवीं- गठौन के काम में रकम तुरंत खींचना संभव नहीं होता । दुकान के सोने के बने – बनाए नए जेवर गलाने पर ही यह इंतजाम हो सकता था । चाँदी की कुछ “थकिया”( शुद्ध चांदी गोलाकार )तथा कुछ सोने के “बिटूर” (शुद्ध स्थानीय गले हुए सोने के टुकड़े )दुकान पर थे , लेकिन उनसे जमीन की पूरी कीमत नहीं दी जा सकती थी । खैर, जमीन छोड़ने की चीज नहीं है ,यह मन तो राम प्रकाश जी रास्ते में ही बना चुके थे ।
कुँवर लुत्फे अली खाँ को कौन नहीं जानता था । आन – बान – शान के लिए विख्यात थे। ईमानदारी और सच्चरित्रता उनका गुण था । बात के पक्के थे । रियासत में शासन और प्रशासन पर अच्छी पकड़ थी। कुल मिलाकर रामपुर रियासत की एक बड़ी हस्ती कहे जा सकते थे । जमीन का तो खैर देखना ही क्या था ! एक औपचारिकता मात्र थी । जमीन देखी ,सौदा पक्का हो गया । दोनों महानुभाव इस सौदे से प्रसन्न थे । कुँवर लुत्फे अली खाँ को इस बात की प्रसन्नता थी कि उनकी जमीन सही हाथों में जा रही है। राम प्रकाश जी इस बात से प्रसन्न थे कि उनकी बिना माँगी मुराद सौगात के रूप में परमात्मा ने खुद उनके पास तक पहुँचा दी थी। कुछ ही दिनों में जमीन की लिखा – पढ़ी का काम अर्थात जो औपचारिकताएँ बैनामा( रजिस्ट्री – पत्र ) के लेखन आदि के लिए होती थी ,वह पूरी हो गई । दस दिसंबर 1962 को जमीन की रजिस्ट्री राम प्रकाश जी ने टैगोर शिशु निकेतन के नाम करा ली। दुकान पर अलमारी में रखे हुए नए चमचमाते हुए जेवर जो ग्राहकों को बेचे जाने के योग्य थे, राम प्रकाश जी ने एक क्षण के लिए भी संकोच न करते हुए गला दिए और चुटकियों में रुपयों का इंतजाम पूरा हो गया ।
न अपने लिए उन्होंने कभी सोचा था, न अपने लाभ के लिए उनका दिमाग चलता था । 19 जनवरी 1956 में जब से सुंदरलाल जी का देहांत हुआ , सात वर्ष हो चुके थे। उनकी जिंदगी का एक ही मिशन था,स्कूलों के लिए जमीन खरीद कर शिक्षा कार्यों के लिए उन्हें समर्पित कर देना। राम प्रकाश जी को न केवल निर्लोभी वृत्ति परमात्मा ने दी थी अपितु जैसी अहंकार-शून्यता उनमें थी ,वह भी एक दुर्लभ प्रवृत्ति ही कही जाएगी । सब कुछ करते हुए भी अपने आप को पृष्ठभूमि में छुपा लेना तथा साधारण व्यक्ति के समान ही जन-जीवन में रच – बस जाना ,यह उनका गुण था ।
दिसंबर 1962 में रियासत के विलीनीकरण को 13 वर्ष बीत चुके थे । फिर भी आश्चर्यजनक रूप से नवाब साहब के चित्र वाले स्टांप पेपर रजिस्ट्री के दफ्तर में प्रयोग में आ रहे थे । एक सौ रुपए का स्टांप- पेपर रियासतकालीन नवाब रजा अली खाँ के चित्र सहित खरीदा गया था । विक्रेता के रूप में कुँवर लुत्फे अली खाँ पुत्र अब्बास अली खाँ ,कौम शेख ,निवासी मुहल्ला कूँचा लंगरखाना,रामपुर दर्ज हुआ । रजिस्ट्री टैगोर शिशु निकेतन के नाम हुई । प्रबंधक के तौर पर राम प्रकाश जी का नाम था ।
यद्यपि जमीन खरीदने में काफी पैसा खर्च हो गया और यह राम प्रकाश जी की हैसियत से काफी बढ़-चढ़कर किया जाने वाला कार्य था, फिर भी जमीन को टैगोर शिशु निकेतन के उपयोग में लाने के लिए उन्होंने उस पर दो मंजिला भवन बनवाया। इस तरह ग्राउंड फ्लोर (भूमि तल) तथा फर्स्ट फ्लोर (पहली मंजिल) पर एक – एक कमरा बनवाया तथा उसमें टैगोर शिशु निकेतन के बच्चों की कक्षाएँ लगना शुरू हो गयीं। दस वर्षों तक कुँवर लुत्फे अली खाँ वाली जमीन पर टैगोर शिशु निकेतन की कक्षाएँ चलीं।
????????
शैक्षिक पुस्तकालय की परिकल्पना
???☘️???☘️???
अब आइए ,”शैक्षिक पुस्तकालय” के विचार की ओर आपको ले चलते हैं । 1970 में शैक्षिक पुस्तकालय की परिकल्पना को साकार करने के लिए रामप्रकाश जी ने वास्तविक रुप से पुस्तकालय खोल दिया था। इससे पहले उन्होंने पुस्तकालय खोलने के लिए अपनी स्वर्गवासी बहन श्रीमती ओमवती देवी (काशीपुर ,उत्तराखंड निवासी) की स्मृति में एक कमरा बनवाया, जिसमें कुछ पैसा रामप्रकाश जी का लगा था तथा कुछ स्वर्गीय ओमवती देवी की ससुराल का लगा था । स्वर्गीय ओमवती देवी कक्ष की रचना शैक्षिक पुस्तकालय के विचार को क्रियान्वित करने की दृष्टि से ही बनी थी। इसमें दीवार पर इस प्रकार से अलमारियाँ बनवाई गई थीं कि उसमें पुस्तकें रखी जा सकें तथा पुस्तकालय भली -भाँति कार्य कर सके। स्वर्गीय ओमवती देवी का यह कमरा टैगोर शिशु निकेतन में पूर्व दिशा की ओर पहली मंजिल पर बना हुआ था और इस पर “स्वर्गीय ओमवती” नाम अंकित था।
शैक्षिक पुस्तकालय में छात्रों ने अच्छी रूचि ली । कोर्स की पुस्तकें पढ़ने के लिए न केवल छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में आने लगे अपितु डिग्री कॉलेज के प्रोफ़ेसर भी शैक्षिक पुस्तकालय के विचार से प्रभावित थे । एक वर्ष में ही शैक्षिक पुस्तकालय में पढ़ने वाले छात्र छात्राओं की संख्या इतनी ज्यादा हो गई थी कि ओमवती देवी कक्ष पूरी तरह से भरने लगा था । यद्यपि इस कमरे तक पहुंचने के लिए एक जीना चढ़कर तथा छत पार करके जाना पड़ता था ,तो भी किसी को यह असुविधाजनक नहीं लगा । उत्साह के साथ खुशी – खुशी सब छात्र-छात्राएं पुस्तकालय के समय में आते थे तथा लाभान्वित होते थे ।
प्रयोग की सफलता से उत्साहित होकर राम प्रकाश जी के मन में यह विचार आया कि क्यों न एक पृथक भवन शैक्षिक पुस्तकालय का कुंवर लुत्फे अली खाँ वाली जमीन पर बना दिया जाए तथा एक भव्य पुस्तकालय का स्वरूप निर्मित किया जा सके ।
??????????
? देवर-भाभी का अलौकिक प्रेम
☘️??☘️??☘️??
श्रीमती राजकली देवी राम प्रकाश जी की भाभी थीं। बड़े भाई श्री राम कुमार सर्राफ की पत्नी । राम प्रकाश जी और श्रीमती राजकली देवी दोनों के विचारों में काफी समानता थी। इस कारण से दोनों की पटरी भी खूब बैठती थी । राजकली देवी लंबे समय से अपने देवर के सामाजिक क्रियाकलापों को प्रसन्नता के भाव से देखती चली आ रही थीं। जिस तरह से उन्होंने अपने देवर को सुंदरलाल जी की स्मृति में सुंदर लाल इंटर कॉलेज बनाते हुए देखा था तथा श्रद्धा पूर्वक विद्यालय का संचालन करते हुए पाया था ,उससे यह प्रेम दिव्य रूप से प्रगाढ़ हो चुका था। राजकली देवी अलौकिक स्वभाव की महिला थीं। संसार में रहते हुए जीवन के सर्वोच्च ध्येय को प्राप्त करने के लिए वह सदैव प्रयत्नशील रहीं। जो व्यक्ति उनके जीवन के इस मर्म को नहीं समझ पाते थे ,उन्हें वह शुष्क , अहंकारी तथा अव्यवहारिक लग सकती थीं। वह दरअसल उनके भीतर जो अलौकिक व्यक्तित्व विराजमान था , उसकी महत्ता को नहीं समझ पाते थे । संसार में जीवन व्यतीत करना यह तो केवल एक औपचारिकता मात्र थी। दरअसल राजकली देवी उन महिलाओं में से थीं, जो अपने आध्यात्मिक विचारों में डूबी रहती थीं। घर- गृहस्थी तथा सांसारिकता की बातों में वह जीवन बिताती तो थीं, लेकिन जिस तरह कमल के पुष्प पर जल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता ,ठीक वैसे ही राजकली देवी संसार में रहते हुए भी सांसारिकता से परे थीं। दिनेश जी के गीता प्रवचनों का मर्म देखा जाए तो उन्होंने खूब समझ लिया था ।
घर के दिन – प्रतिदिन के कार्यों में भी राजकली देवी की सुघड़़ता देखते ही बनती थी । विशेष रुप से कचौड़ियाँ बनाने में तो उनका कोई जवाब ही नहीं था । जब राम प्रकाश जी की धर्मपत्नी श्रीमती माया देवी का देहांत 1992 में हुआ ,तब उसके बाद जब भी राजकली देवी अपने घर पर पिठ्ठी की कचौड़ियाँ बनाती थीं, तब अपने देवर रामप्रकाश को जरूर खिलाती थीं। जिस समय कचौड़ियाँ बनाने बैठीं, तब किसी बच्चे के हाथ देवर से कहलवा दिया कि आज मैं कचौड़ियाँ बनाऊंगी । बस ,फिर जब शाम हुई तो पुछवा लिया कि “कचौड़ियाँ बनने के लिए तैयार हैं, जिस समय खाओगे, गरम-गरम बना दूंगी । ” राम प्रकाश जी रात को जल्दी ही खाना खा लेते थे । उनके कहने भर की देर होती थी, राजकली देवी एक-एक कचौड़ी गरम – गरम कढ़ाई से उतारती जाती थीं तथा प्लेट में रखकर राम प्रकाश जी के घर पर भिजवाती जाती थीं। दोनों के घरों के बीच की दूरी मुश्किल से पचास फीट की होगी । बीच में केवल एक मकान पड़ता था । पतली – सी गली थी। किसी भी बच्चे की ड्यूटी लग गई और वह गरम-गरम कचौड़ी एक-एक करके पहुंचाता रहा । जब राम प्रकाश जी का पेट भर गया, तब उन्होंने बच्चे से मना कर दिया और कह दिया कि ” बस ! अब और कचौड़ी मत लाना।” इस दिव्य प्रेम तथा आत्मीयता का कोई मूल्य संसार में नहीं हो सकता । भाभी की उन कचौड़ियों को खाकर रामप्रकाश जी को अपनी नानी गिंदौड़ी देवी की याद आ जाती थी और वह कहते थे कि इतनी अच्छी तरह से भीतर तक सिंकी हुई कचौड़ी या तो नानी बनाती थीं या फिर भाभी के हाथ की हैं। यहाँ यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि रामप्रकाश जी की पत्नी श्रीमती माया देवी के हाथ के बने हुए परांठे ,पूड़ी और कचौड़ी भी लाजवाब होती थीं। लेकिन जो प्रेम देवर ने भाभी की कचौड़ी में पाया, वह अद्भुत था।
उपरोक्त दिव्य कचौड़ियों के संबंध में एक कुंडलिया प्रस्तुत है:-
_दिव्य कचौड़ी(कुंडलिया)_
दिव्य कचौड़ी सिंक रही ,घी में गोल – मटोल
देवर से संबंध ज्यों , भाभी रहीं टटोल
भाभी रहीं टटोल , मधुर देवर से नाता
एक – एक कर भेज , खिलाना आता भाता
कहते रवि कविराय ,सिंकी फिर झटपट दौड़ी
धन्य अलौकिक प्रेम ,धन्य तुम दिव्य कचौड़ी
?????????☘️
शैक्षिक पुस्तकालय के नवीन भवन का शिलान्यास एवं उद्घाटन
??☘️?????
यह बहुत स्वाभाविक था कि राम प्रकाश जी को कुंवर लुत्फे अली खाँ वाली जमीन पर शैक्षिक पुस्तकालय की भव्य भवन संरचना के कार्य में अपनी भाभी श्रीमती राजकली देवी का पवित्र सहयोग प्राप्त हो गया। फिर क्या था, 1971 ईसवी के अंत में जब श्री दीनानाथ दिनेश जी टैगोर शिशु निकेतन के प्रांगण में गीता प्रवचन के लिए पधारे ,तब राम प्रकाश जी ने नए पुस्तकालय भवन के शिलान्यास का पत्थर तैयार करवा लिया और दिनेश जी के कर कमलों से यह शिलान्यास संपन्न हो गया। दिनेश जी टैगोर शिशु निकेतन के मुख्य भवन में जीना चढ़कर ओमवती देवी कक्ष में चलने वाले शैक्षिक पुस्तकालय के मुख्य द्वार पर आए । पत्थर का पूजन किया और इस प्रकार एक सुंदर कार्य का शिलान्यास, साथ ही साथ देवर और भाभी के दिव्य प्रेम की कभी न समाप्त होने वाली गाथा इतिहास के प्रष्ठों पर अमिट रुप से अंकित हो गयी। शिलान्यास के पत्थर पर यह शब्द अंकित थे:-
” श्रीमती राजकली देवी धर्मपत्नी लाला राम कुमार सर्राफ द्वारा निर्माण हेतु शैक्षिक पुस्तकालय कक्ष का शिलान्यास पंडित दीनानाथ दिनेश जी के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ। मिति माघ कृष्ण एकादशी विक्रम संवत 2028 “
1972 में जब कुँवर लुत्फे अली अली खाँ वाली जमीन पर शैक्षिक पुस्तकालय का नया भवन निर्मित हुआ ,तब शिलान्यास का यह पत्थर भवन के अंदर लगवा दिया गया और शैक्षिक पुस्तकालय के नाम के साथ राजकली देवी का नाम भी जुड़ गया । इस तरह कुंवर लुत्फे अली खाँ वाली जमीन का उपयोग टैगोर शिशु निकेतन की कक्षाएँ लगने के स्थान पर पुस्तकालय की गतिविधियों के लिए होने लगा ।
नवंबर 1972 में दिनेश जी ने रामपुर पधार कर टैगोर शिशु निकेतन के प्रांगण में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले गीता प्रवचन के अंतर्गत अपने सद्विचारों से जहाँ एक ओर जनता को लाभान्वित किया वहीं दूसरी ओर नवनिर्मित राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय का उद्घाटन भी आपके ही कर- कमलों द्वारा संपन्न हुआ । इस तरह सर्वप्रथम भारत के एक महान संत के चरण पुस्तकालय में पड़े और भवन धन्य हो गया। सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक ने राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय के उद्घाटन के अवसर पर समारोह का एक बड़ा फोटो तथा विस्तृत रिपोर्ट अखबार के पृष्ठ एक तथा चार को संयुक्त रूप से मिलाकर प्रकाशित की। इतना महत्व किसी घटना को अखबार में शायद ही कभी भी दिया होगा।
सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक ने 11 नवंबर 1972 अंक में लिखा:-
रामपुर । गैर सरकारी शिक्षा क्षेत्र में प्रगति के एकमेव स्तम्भ श्री रामप्रकाश सर्राफ के प्रयत्नों के परिणाम स्वरूप निर्मित विभिन्न शिक्षा संस्थाओं की श्रंखला की एक और गौरयमय कड़ी श्रीमती राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय का उद्घाटन प्रसिद्ध गीताविद श्री दीनानाथ दिनेश द्वारा किया गया।
श्री दिनेश ने श्री रामप्रकाश सर्राफ द्वारा सम्पादित शिक्षा प्रसार के कार्यों की भूरि-भूरि प्रसंशा की और आशा व्यक्त की कि आगामी कुछ वर्षों में रामपुर का वातावरण पूर्णतया गीतामय एवं ज्ञानमय बन सकेगा।
कार्यक्रम में श्रीमती राजकली देवी ने अपने विचार व्यक्त करते हुंये कहा कि मैं एक समय से अपने एकत्रित धन को किसी सुकार्य में व्यय करने का विचार कर रही थी। मुझे मेरे देवर श्री रामप्रकाश ने पुस्तकालय की स्थापना में वह धन व्यय करने को प्रेरणा दी और अाज मैं भावनाओ के साक्षात स्वरुप शैक्षिक पुस्तकालय को समाज को समर्पित करते हुये सन्तोष का अनुभव कर रही हूँ।”
सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक शैक्षिक पुस्तकालय योजना को प्रसन्नता के साथ देखता रहा है । 26 दिसंबर 1971 के अंक में टैगोर पुस्तकालय शीर्षक से सहकारी युग लिखता है :-
“25 दिसंबर की सायं काल टैगोर शिशु निकेतन में स्नातकोत्तर कक्षाओं के लिए निर्मित पुस्तकालय को जिन अनेक बुद्धिजीवियों ने देखा और सराहा उनमें रजा महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. मायाराम तथा कई अन्य प्राध्यापक भी थे । टैगोर विद्यालय के प्रबंधक श्री राम प्रकाश सर्राफ को उक्त निस्वार्थ सेवा के लिए अनेकानेक बधाइयाँ दी गईं।”( सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक 26 दिसंबर 1971 )
इसी क्रम में 17 जनवरी 1972 का अंक निम्नलिखित रिपोर्ट के लिए स्मरणीय है :-
” 13 जनवरी को टैगोर पुस्तकालय में नेपाली महंत श्री नारायण प्रसाद उप्रेती ने कबीर दास जी के जीवन पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन श्री कृष्ण गोपाल और सभा की अध्यक्षता प्रोफेसर टी.एस. सक्सेना ने की।”
6 अप्रैल 1972 के अंक में सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक ने राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय के विचार का निम्न शब्दों में अभिनंदन किया:-
“शिक्षोन्नति की दिशा में सराहनीय प्रयास : श्री राम प्रकाश सर्राफ द्वारा राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय की स्थापना । । रामपुर । स्थानीय व्यवसाई श्री राम प्रकाश सर्राफ ने नगर के मध्य लगभग एक लाख रुपया लगा कर बी.ए. एवं एम.ए. के छात्रों के लिए एक अभूतपूर्व पुस्तकालय योजना का श्रीगणेश किया है । उक्त प्रयास इस जिले और कदाचित संपूर्ण रुहेलखंड विभाग में अभूतपूर्व है । उक्त पुस्तकालय में शोध कार्यों के निमित्त भी छात्रगण आया करते हैं तथा स्नातकोत्तर विभाग के अध्यापक निशुल्क मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। श्री राम प्रकाश सर्राफ का मत है कि बड़ी-बड़ी शिक्षा संस्थाओं के छात्र श्रेष्ठ पुस्तकों के अभाव में वांछित प्रगति नहीं कर पाते । अतः रामपुर के छात्रों का स्तर उन्नत करने के लिए यह प्रयास किया गया है । इस पुस्तकालय से लाभान्वित होने वाले छात्रों से किसी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा श्री राम प्रकाश ने बताया है कि प्रारंभ में लगभग एक लाख की धनराशि उक्त कार्य में लगाई जा चुकी है । उक्त राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय में प्रतिदिन लगभग एक सौ छात्र अध्ययनार्थ आते हैं और उसकी व्यवस्था टैगोर शिशु निकेतन के प्रधानाचार्य श्री कृष्ण गोपाल सरोज के द्वारा संपन्न होती है । श्री राम प्रकाश के इस कार्य की सर्वत्र सराहना हो रही है।”( सहकारी युग ,हिंदी साप्ताहिक 6 अप्रैल 1972 अंक)
☘️????☘️?
शोध प्रबंध संग्रह योजना
???????☘️?
2002 में श्रीमती राजकली देवी का निधन हुआ तथा 2006 में राम प्रकाश जी का देहांत हो गया ।
अक्टूबर 2007 में जब राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय तथा टैगोर शिशु निकेतन का संयुक्त वार्षिक उत्सव पुस्तकालय भवन में आयोजित हुआ तब रवि प्रकाश ने घोषणा की कि पुस्तकालय को एक शोध प्रबंध-संस्थान के रूप में विकसित करने की इच्छा है। इसके लिए हिंदी में जो शोध प्रबंध लिखे गए हैं उनकी एक प्रति फोटोस्टेट करा कर अगर शोधप्रबंध – कर्ता पुस्तकालय को उपलब्ध कराएं तो उन्हें लागत मूल्य पर खरीदने की योजना है। योजना के अंतर्गत कुछ वर्ष बाद सुप्रसिद्ध लेखक और कवि डॉक्टर छोटे लाल शर्मा नागेंद्र ने रवि प्रकाश को एक चिट्ठी लिखकर उनकी 2007 की घोषणा की याद दिलाई और कहा कि अगर योजना चल रही हो तो कुछ शोध प्रबंध उपलब्ध कराए जा सकते हैं । डॉ नागेंद्र का पत्र इस प्रकार था:-
सी – 587 ,केके अस्पताल रोड राजेंद्र नगर, बरेली
सम्मान्य बंधु नमस्कार
आपको स्मरण होगा कि आपने पुस्तकालय में भाषण में कहा था- रामपुर से शोध प्रबंध आ रहे हैं यदि वे फोटोस्टेट रूप में मिल जाएं तो उन्हें लाइब्रेरी में रखा जाए जिससे भविष्य में उन्हें देखा जा सके । मुझे यह बात कल ही याद आई । सोचा आपको स्मरण कराया जाए । मेरे शोध प्रबंध सहित इस समय पाँच थीसिस हैं। यदि आप कहें /आज्ञा दें ,तैयारी की जाए । पाँच शोध प्रबंध की पृष्ठ संख्या 1500 के आसपास होगी। विचार कर लें। जैसी योजना हो ,बतला दें। सहयोग मिलेगा । शेष शुभ ।
आपका नागेंद्र
1 – 8 – 2009
“अंधा क्या चाहे ,दो आँखें “- इस कहावत को चरितार्थ करते हुए रवि प्रकाश ने तत्काल डॉक्टर नागेंद्र को साधुवाद दिया और शोध प्रबंध तैयार करवा लिए । शोध प्रबंध की योजना अच्छी थी तथा इसका दायरा बहुत व्यापक था। अध्ययन की दृष्टि से इसका बहुत लाभ रहा ।
पुस्तकालय भवन टैगोर शिशु निकेतन की विभिन्न गतिविधियों के लिए तथा पुस्तकालय के वार्षिकोत्सव आदि कार्यक्रमों के लिए उपयोग में आने का सिलसिला लंबे समय तक चला। नवंबर 1972 में दिनेश जी आखरी बार टैगोर शिशु निकेतन में पधारे थे । फिर उनका स्वास्थ्य आने के योग्य नहीं रह गया था ।1974 में उनकी मृत्यु हो गई।
???????
श्री काशी कोकिल जी के प्रवचन
????????
1979-80 के आसपास रामचरितमानस के विद्वान बनारस निवासी पंडित पारसनाथ त्रिपाठी काशी कोकिल जी के रामचरितमानस पर प्रवचन राम प्रकाश जी ने प्रतिवर्ष आयोजित किए जाने का सिलसिला शुरू किया था। प्रारंभ में श्री काशी कोकिल जी के प्रवचन टैगोर शिशु निकेतन के प्रांगण में होते थे । वक्ता शानदार और प्रभावशाली थे लेकिन दिनेश जी वाली बात कहां से आती ! वह भीड़ जो दिनेश जी को सुनने के लिए उमड़ती थी, उसका अभाव देखने में आया । परिणामतः राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय में काशी कोकिल जी के प्रवचन आयोजित होना शुरू हो गए । इसमें दो बातें रहती थीं। एक तो यह कि विद्यालय प्रांगण की तुलना में कम श्रोताओं के होने पर भी हॉल भरा – भरा नजर आता था । दूसरा मुख्य लाभ यह था कि तीन दिन तक चलने वाले प्रवचन के लिए बिछाई आदि का कार्य सुविधाजनक रुप से संपन्न हो जाता था तथा बरसात आदि का खतरा भी नहीं रहता था ।
?????????
टैगोर में शर्मा बंधुओं का कार्यक्रम
?????????
1975 – 80 के मध्य ही मुजफ्फरनगर से पंडित रामानंद शर्मा तथा पंडित शिवकुमार शर्मा का रामकथा पर सुमधुर भजन संध्या का आयोजन टैगोर शिशु निकेतन के प्रांगण में किया गया था । अवश्य ही आप दोनों बंधुओं-आध्यात्मिक विभूतियों ने राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय को अपने श्री चरणों से पवित्र किया होगा । पंडित शिवकुमार शर्मा जी के चार पुत्र बाद में शर्मा बंधुओं के नाम से सुविख्यात भजन – गायक के रूप में स्थापित हुए।
???????☘️??
समय-समय पर साहित्यकारों का आगमन
???????☘️?☘️
राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय महान साहित्यिक विभूतियों के पधारने का साक्षी बना।
7 नवंबर 1986 को प्रसिद्ध साहित्यकार श्री विष्णु प्रभाकर का भाषण राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय में ही आयोजित किया गया था । उन्होंने इस अवसर पर रवि प्रकाश की पुस्तक रामपुर के रत्न का लोकार्पण किया था । पुस्तक की प्रथम प्रति रवि प्रकाश ने अपनी ताई श्रीमती राजकली देवी को भेंट की थी। “रामपुर के रत्न” पुस्तक रवि प्रकाश के पूज्य ताऊजी स्वर्गीय लाला रामकुमार सर्राफ की पावन स्मृति को समर्पित थी तथा उनका एक चित्र पुस्तक में सुशोभित है । इस अवसर पर रामपुर के अनेक महापुरुषों को श्री विष्णु प्रभाकर जी ने माल्यार्पण करके सम्मानित भी किया था । सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक के यशस्वी संपादक श्री महेंद्र प्रसाद गुप्त जी के प्रयत्नों से आयोजित रामपुर के लिए यह राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय में आयोजित समारोह तथा श्री विष्णु प्रभाकर का भाषण एक अविस्मरणीय यादगार बन गया ।
1993 में प्रसिद्ध कवि श्री माहेश्वर तिवारी मुरादाबाद से रामपुर पधारे तथा राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय में उनका काव्य पाठ आयोजित हुआ।
1996 में रामपुर के प्रसिद्ध कथा वाचक ,लेखक ,भजन-गायक तथा प्रमुख आध्यात्मिक विभूति पंडित रवि देव रामायणी जी का सुमधुर कार्यक्रम राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय में आयोजित किया गया । इस अवसर पर आपने दादी विषयक कुछ छंदों को संगीतबद्ध करके जनता के सामने प्रस्तुत किया था ,जो सभी के द्वारा बहुत पसंद किए गए थे ।
मुरादाबाद निवासी प्रसिद्ध साहित्यकार प्रोफेसर महेंद्र प्रताप जी का 1995 में राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय में आगमन साहित्यिक दृष्टि से एक बड़ी घटना कही जा सकती है। उस समय मंच पर सत्संग शिरोमणि श्री बृजवासी लाल भाई साहब की दिव्य उपस्थिति एक आशीर्वाद से कम नहीं थी। “रामपुर समाचार” साप्ताहिक के संपादक कवि ह्रदय श्री ओमकार शरण ओम भी इस अवसर पर मंच पर सुशोभित रहे । प्रोफ़ेसर महेंद्र प्रताप न केवल एक बड़े चिंतक और कवि थे अपितु उनकी सच्चरित्रता से मुरादाबाद मंडल ही नहीं अपितु दूर-दूर तक सभी लोग प्रभावित थे। आप डॉक्टर चंद्र प्रकाश सक्सेना जी के गुरु रह चुके थे ।चंद्रप्रकाश जी सुंदर लाल इंटर कॉलेज में हिंदी के प्रवक्ता थे । बाद में प्रधानाचार्य भी बने । आपके प्रयासों से प्रोफ़ेसर महेंद्र प्रताप जी का राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय में आगमन इस भवन को एक नई ऊंचाई की ओर ले गया। इस अवसर पर श्रीमती राजकली देवी का शाल ओढ़ाकर तथा फूल माला पहनाकर अभिनंदन भी किया गया था।
वर्ष1999 में बदायूँ निवासी वीर रस के ओजस्वी कवि डॉ बृजेंद्र अवस्थी द्वारा काव्य पाठ राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय परिसर को राष्ट्रीय विचारधारा से ओतप्रोत कर गया । यह कारगिल युद्ध के तत्काल बाद की घटना है।
बदायूं निवासी प्रोफेसर डॉक्टर मोहदत्त साथी का काव्य-पाठ भी वर्ष 2000 में राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय भवन में आयोजित हुआ । इस अवसर पर मोदी जीरोक्स के वरिष्ठ अधिकारी कविवर श्री आर. के. माथुर मंच पर उपस्थित थे।
प्रसिद्ध गीतकार डॉक्टर उर्मिलेश का काव्य पाठ रवि प्रकाश के कहानी संग्रह के लोकार्पण हेतु 1990 में यद्यपि उनकी अपार लोकप्रियता को देखते हुए टैगोर शिशु निकेतन के विशाल प्रांगण में रखा गया था लेकिन डॉ उर्मिलेश ने राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय में भी कुछ समय बिताया था और उनके पदार्पण से पुस्तकालय धन्य हो उठा था ।
स्थानीय स्तर पर रामपुर की महान विभूतियों में से प्रोफ़ेसर ईश्वर शरण सिंघल तथा डॉ. प्रोफेसर ऋषि कुमार चतुर्वेदी जब तक जीवित रहे ,प्रायः प्रत्येक वर्ष ही वार्षिक सम्मेलनों में मंच को सुशोभित करते रहे तथा अपने सारगर्भित संबोधन से जनता को वैचारिक दिशा प्रदान करने का कार्य आपके द्वारा संपन्न होता रहा । पुस्तकालय आपका ऋणी है । प्रसिद्ध इतिहासकार श्री शौकत अली खाँ एडवोकेट उन व्यक्तियों में से हैं जिन्होंने न केवल पुस्तकालय के मंच को सुशोभित किया अपितु श्रोताओं में बैठकर कार्यक्रमों का उत्साहवर्धन न जाने कितनी बार आपके द्वारा होता रहा । इसी तरह श्री रमेश कुमार जैन सामाजिक चेतना के वाहक व्यक्तित्व हैं । आप प्रायः सभी कार्यक्रमों में अपनी प्रेरणादायक उपस्थिति दर्ज करते रहे हैं । एक बार तो कार्यक्रम के प्रतिभागियों का उत्साह बढ़ाने के लिए आप नोटों की माला अपने घर से तैयार करा कर साथ में ले आए थे तथा जैसे ही नाम पुकारे गए ,आपने तत्काल वह नोटों की माला मनपसंद छात्र को पहना दी। सब आश्चर्यचकित रह गए।
? जाति मुक्ति भाषण प्रतियोगिता ? 4 फरवरी 2009 का यह आयोजन समय-समय पर कुछ सामाजिक उद्देश्य से किए जाने वाले ऐसे क्रियाकलाप थे ,जिसका उल्लेख किए बगैर शैक्षिक पुस्तकालय की उपादेयता का उल्लेख अधूरा रहेगा ।
? आशु कविता प्रतियोगिता वर्ष 2017 ?में राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय में आयोजित की गई जिसमें मंच को स्थानीय काव्य जगत के महारथी सर्व श्री जितेंद्र कमल आनंद तथा डॉ. रघुवीर शरण शर्मा द्वारा सुशोभित किया गया। इसमें तत्काल दी गई पंक्ति को आधार बनाकर प्रतिभागियों को कविता की रचना करनी थी। कार्यक्रम बहुत सफल रहा । प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार हमने क्रमशः ढाई हजार रुपये, ₹1500 तथा ₹1000 का रखा था। प्रथम पुरस्कार प्रथमा बैंक के वरिष्ठ अधिकारी प्रसिद्ध गजलकार श्री ओंकार सिंह विवेक को प्राप्त हुआ था। निर्णायक दोनों मंचासीन महानुभाव थे।
वर्ष 2007 का प्रथम रामप्रकाश सर्राफ पुरस्कार श्री हरि दत्त शर्मा (प्रसिद्ध लेखक और प्रखर वक्ता) को दिया गया था। अनेक वर्षों तक व्यक्तियों और संस्थाओं को यह पुरस्कार पुस्तकालय भवन में दिया जाता रहा । इसके अंतर्गत ₹5000 (पाँच हजार रुपए) ) की नगद धनराशि दी जाती थी।
रामपुर रियासत के राजकवि श्री राधा मोहन चतुर्वेदी जी की कविताओं का पाठ आप के सुयोग्य सुपुत्र श्री राम मोहन चतुर्वेदी जी के श्रीमुख से आयोजित करने का कार्य भी वर्ष 2016 में राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय की एक अत्यंत उल्लेखनीय घटना कही जा सकती है । प्रयोग हमेशा से नए-नए क्रियाकलापों की तथा अविस्मरणीय दिव्यलोक की सृष्टि में सहायक होते हैं ।
?☘️?☘️?☘️?☘️?

वर्ष 2023 में 5 अप्रैल से 10 मई तक 40 दिवसीय रामचरितमानस का पाठ राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय के तत्वावधान में आयोजित किया गया। इससे पहले लंबे समय तक प्रति सप्ताह टैगोर काव्य गोष्ठियॉं चलती रहीं ,जिसमें रामपुर के कवियों के काव्य पाठ होते हुए। कुछ दिवंगत कवियों की पुस्तकों का भी पाठ हुआ। कुछ पुस्तकों पर चर्चा भी हुई। कुंडलिया लेखन पर कार्यशाला भी आयोजित की गई। गजल पर भी एक चर्चा का आयोजन हुआ।
___________________________
राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय का भवन कुँवर लुत्फे अली खाँ की इस दिव्य चेतना के साथ अस्तित्व में आया था कि वह इसे रामप्रकाश जी के हाथों में ही सौंपना चाहते थे तथा उन्हें विश्वास था कि संभवतः इस भूमि का सर्वोत्तम उपयोग उन के माध्यम से हो सकेगा।
इस दिव्य चेतना को प्रणाम ।।
________________________________
लेखक :-
रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
प्रबंधक ,
राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय
पीपल टोला, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

691 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
है सियासत का असर या है जमाने का चलन।
है सियासत का असर या है जमाने का चलन।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
अर्धांगनी
अर्धांगनी
पूनम 'समर्थ' (आगाज ए दिल)
फिर फिर गलत होने का
फिर फिर गलत होने का
Chitra Bisht
मां तुम बहुत याद आती हो
मां तुम बहुत याद आती हो
Mukesh Kumar Sonkar
*जिंदगी भर धन जुटाया, बाद में किसको मिला (हिंदी गजल)*
*जिंदगी भर धन जुटाया, बाद में किसको मिला (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
सद्विचार
सद्विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
ఓ యువత మేలుకో..
ఓ యువత మేలుకో..
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
नजराना
नजराना
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
माँ।
माँ।
Dr Archana Gupta
अपने लक्ष्य पर त्राटक कर।
अपने लक्ष्य पर त्राटक कर।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
Some times....
Some times....
Dr .Shweta sood 'Madhu'
फूल बेजुबान नहीं होते
फूल बेजुबान नहीं होते
VINOD CHAUHAN
वो जाने क्या कलाई पर कभी बांधा नहीं है।
वो जाने क्या कलाई पर कभी बांधा नहीं है।
सत्य कुमार प्रेमी
गीत लिखती हूं मगर शायर नहीं हूं,
गीत लिखती हूं मगर शायर नहीं हूं,
Anamika Tiwari 'annpurna '
धुंध इतनी की खुद के
धुंध इतनी की खुद के
Atul "Krishn"
नमन है_मेरा वीर_नारी आप_को..🙏💐
नमन है_मेरा वीर_नारी आप_को..🙏💐
Shubham Pandey (S P)
जहर मे भी इतना जहर नही होता है,
जहर मे भी इतना जहर नही होता है,
Ranjeet kumar patre
वन्दे मातरम्
वन्दे मातरम्
Vandana Namdev
4749.*पूर्णिका*
4749.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
उनकी नज़रों में अपना भी कोई ठिकाना है,
उनकी नज़रों में अपना भी कोई ठिकाना है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
अविरल होती बारिशें,
अविरल होती बारिशें,
sushil sarna
मैं और मेरी तन्हाई
मैं और मेरी तन्हाई
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
होली के दिन
होली के दिन
Ghanshyam Poddar
🙅वक़्त का तक़ाज़ा🙅
🙅वक़्त का तक़ाज़ा🙅
*प्रणय*
नेता जब से बोलने लगे सच
नेता जब से बोलने लगे सच
Dhirendra Singh
मौत का डर
मौत का डर
अनिल "आदर्श"
Easy is to judge the mistakes of others,
Easy is to judge the mistakes of others,
पूर्वार्थ
कात्यायनी मां
कात्यायनी मां
मधुसूदन गौतम
"सच्ची मोहब्बत के बगैर"
Dr. Kishan tandon kranti
बहुत कहानी तुमने बोई
बहुत कहानी तुमने बोई
Suryakant Dwivedi
Loading...