रमेशराज की 11 तेवरियाँ
1.
दोनों ही कान्हा के प्रिय हैं
मीरा हो या रसखान। नादान।।
जो निर्बल का बल बनता है
उसके वश में भगवान। नादान।।
तुझको विश्वास मुखौटों पे
सच्चाई कुछ तो जान। नादान।।
ये सम्प्रदाय का चक्कर है
तू धर्म इसे मत मान। नादान।।
पर्दे के पीछे प्रेत यही
इन देवों को पहचान। नादान।।
जो चुगलखोर है, बच उससे
रख यूँ मत कच्चे कान। नादान।।
तू द्वैत जान, अद्वैत समझ
व्रत का मतलब रमजान। नादान।।
रमेशराज
2.
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सुलझाने बैठें क्या गुत्थी
जब इसका ओर न छोर। हर ओर।।
करनी थी जिन्हें लोकरक्षा
बन बैठे आदमखोर।हर ओर।।
सड़कों पे पउआबाज़ दिखें
लम्पट-गुण्डों का शोर।हर ओर।।
सद्भावों की नदियां सूखीं
अब ग़ायब हुई हिलोर।हर ओर।।
कोयल की कूक मिले गुमसुम
नित नाचें आज न मोर।हर ओर।।
रमेशराज
3.
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छल का बल का ये दौर मगर
तू अपने नेक उसूल। मत भूल।।
वह मुस्कानों से ठग लेगा
उसके हाथों में फूल। मत भूल।।
ये जंगल ही कुछ ऐसा है
मिलने हैं अभी बबूल। मत भूल।।
कोशिश कर उलझन सुलझेगी
मिल सकता कोई टूल। मत भूल।।
करले संघर्ष, जीत निश्चित
बदले सब कुछ आमूल। मत भूल।।
रमेशराज
4.
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जो सच की खातिर ज़िन्दा है
उसका ही काम तमाम। हे राम!!
खुशियों पर नज़र जिधर डालें
हर सू है क़त्लेआम। हे राम!!
जो रखता चाह उजालों की
उसके हिस्से में शाम। हे राम!!
जिनको प्यारी थी आज़ादी
बन बैठे सभी ग़ुलाम। हे राम!!
कोई छलिया, कोई डाकू
अब किसको करें प्रणाम।हे राम!!
रमेशराज
5.
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दोनों ही कान्हा के प्रिय हैं
मीरा हो या रसखान। नादान।।
जो निर्बल का बल बनता है
उसके वश में भगवान। नादान।।
तुझको विश्वास मुखौटों पे
सच्चाई कुछ तो जान। नादान।।
ये सम्प्रदाय का चक्कर है
तू धर्म इसे मत मान। नादान।।
पर्दे के पीछे प्रेत यही
इन देवों को पहचान। नादान।।
जो चुगलखोर है, बच उससे
रख यूँ मत कच्चे कान। नादान।।
तू द्वैत जान, अद्वैत समझ
व्रत का मतलब रमजान। नादान।।
रमेशराज
6.
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बाक़ी तो साफ़-सफ़ाई है
बस पड़ी हुई है पीक।सब ठीक।।
घबरा मत नाव न डूबेगी
बस छेद हुआ बारीक।सब ठीक।।
जीना है इन्हीं हादसों में
तू मार न ऐसे कीक।सब ठीक।।
दीखेगा साँप न तुझे कभी
बस पीटे जा तू लीक।सब ठीक।।
उसपे तेरी हर उलझन का
उत्तर है यही सटीक।सब ठीक।।
रमेशराज
7.
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अबला की लाज लूटने को
रहते हैं सदा अधीर। हम वीर।।
बलशाली को नित शीश झुका
निर्बल पे साधें तीर। हम वीर।।
उस मल को निर्मल सिद्ध करें
जिस दल की खाते खीर। हम वीर।।
हम से ही ज़िन्दा भीड़तंत्र
सज्जन को देते पीर। हम वीर।।
गरियाने को कविता मानें
हैं ऐसे ग़ालिब-मीर। हम वीर।।
जिस बस्ती में सद्भाव दिखे
झट उसको डालें चीर। हम वीर।।
तुम ठाठ-बाट पे मत जाओ
अपना है नाम फ़कीर। हम वीर।।
रमेशराज
8.
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तब ही क़िस्मत तेरी बदले
जब रहे हौसला संग। लड़ जंग।।
आनन्द छंद मकरंद लुटे
सब दीख रहा है भंग। लड़ जंग।।
कुछ तो सचेत हो जा प्यारे
वर्ना जीवन बदरंग। लड़ जंग।।
रणकौशल को मत भूल अरे
इतना भी नहीं अपंग। लड़ जंग।।
फिर तोड़ भगीरथ हर पत्थर
तुझको लानी है गंग। लड़ जंग।।
रमेशराज
9.
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जिसमें दिखती हो स्पर्धा
अच्छी है ऐसी होड़। मत छोड़।।
नफ़रत के बदले प्रेम बढ़ा
बिखरे रिश्तों को जोड़। मत छोड़।।
गद्दार वतन में जितने हैं
नीबू-सा उन्हें निचोड़। मत छोड़।।
अति कर बैठे हैं व्यभिचारी
हर घड़ा पाप का फोड़।मत छोड़।।
चलना है नंगे पांव तुझे
जितने काँटे हैं तोड़।मत छोड़।।
वर्ना ये कष्ट बहुत देगा
पापी की बाँह मरोड़।मत छोड़।।
रमेशराज
10.
कल तेरी जीत सुनिश्चित है
रहना होगा तैयार। मत हार।।
माना तूफ़ां में नाव फँसी
नदिया करनी है पार।मत हार।
इस तीखेपन को क़ायम रख
हारेगा हर गद्दार। मत हार।।
पापी के सम्मुख इतना कर
रख आँखों में अंगार। मत हार।।
तू ईसा है-गुरु नानक है
तू सच का है अवतार। मत हार।।
होता है अक्सर होता है
जीवन का मतलब ख़ार। मत हार।।
साहस को थोड़ा ज़िन्दा रख
पैने कर ले औजार। मत हार।।
दीपक-सा जलकर देख ज़रा
ये भागेगा अँधियार। मत हार।।
रमेशराज
11.
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तूफ़ां के आगे फिर तूफ़ां
ये नाव न जानी पार। इसबार।।
जीते ठग चोर जेबकतरे
हम गए बाजियां हार।इसबार।।
हर तीर वक्ष पर सहने को
रहना होगा तैयार।इसबार।।
उसका निज़ाम है चीखो मत
वर्ना पड़नी है मार।इसबार।।
ये खत्म नहीं होगी पीड़ा
कर चाहे जो उपचार।इसबार।।
मिलने तुझको अब तो तय है
फूलों के बदले खार।इसबार।
तूने सरपंच बनाये जो
निकले सारे गद्दार।इसबार।।
परिवर्तन वाले सोचों की
पैनी कर प्यारे धार। इसबार।।
रमेशराज