‘रंग विदूषक’ के संस्थापक व महान रंगकर्मी पद्मश्री बंसी कौल जी का देहान्त
भारत की राजधानी दिल्ली के विश्व प्रसिद्ध नाट्य संस्थान, ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (National School of Drama)’ से स्नातक की पढ़ाई पूरी की थी, महान रंगकर्मी बंसी कौल जी ने। अपनी महत्वकांक्षाओं को नई उड़ान देने के लिए बाद में उन्होंने भोपाल (मध्य प्रदेश) में ‘रंग विदूषक’ के नाम से नाट्य संस्था भी बनाई। वर्तमान समय के मशहूर अभिनेता नसीरूद्दीन शाह व ओमपुरी, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली में उनके समकालीन स्नातक छात्र रहे। बंसी जी ने 1984 में भोपाल में नाट्य समूह ‘रंग विदूषक’ की स्थापना की थी। हिन्दी पट्टी के उत्साही, संघर्षशील व नवोन्मेषी कलाकारों के लिए यह रेपर्टरी एक ऐसी नाट्य शैली में ख़ुद को पढ़ने-गढ़ने व निखारने का केन्द्र बनीं — जिसने आधुनिक रंगमंच पर प्रयोग और नवाचार का एक नया ही विश्व रच दिया। उनका मानना था कि, थिएटर की दुनिया ऐसी है, जिसमें आप गायन, वादन व नृत्य, समेत अनेक महत्वपूर्ण कलाओं का एक साथ उपयोग करते हैं। बंसी कौल बेहतरीन डिजाइनर भी थे। उन्होंने चीन, फ्रांस, स्विटजरलैंड सहित एशिया व यूरोप-अमेरिका महाद्वीपों में भारतीय नाट्य कला उत्सवों को लेकर आयोजित कार्यक्रमों की अनेकों रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने थियेटर जीवन की शुरुआत रा.ना.वि. (N.S.D.) रिपर्टरी कंपनी में बतौर डॉयरेक्टर के तौर पर की थी। वह शुरू में रा.ना.वि. के साथ एक शिक्षक के रूप में कार्यरत थे।
भारत के जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में 23 अगस्त 1949 को बंसी कौल जी का जन्म हुआ था। बंसी कौल एक मशहूर थिएटर अभिनेता, निर्देशक व कुशल डिजाइनर भी थे। 71 वर्षीय पद्मश्री विजेता बंसी कौल लंबे वक्त से बीमार थे। गत शनिवार 6 फरवरी 2021 को उनका निधन हो गया। कैंसर के कारण शनिवार, सुबह 8 बजकर 46 मिनट पर, दिल्ली स्थित द्वारका में बंसी कौल जी अपने जीवन की लड़ाई हार गए। जहाँ वे ‘सतीसर अपार्टमेंट’ में अपनी पत्नी अंजना पुरी के साथ रहते थे। हाल ही में उनके कैंसर का ऑपरेशन भी किया गया था। बंसी कौल को रंगमंच के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए सात वर्ष पहले 2014 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
‘होनहार बिरवान के होत चिकने पात’ कहावत को चित्रार्थ करते हुए सन 1984 में अपने स्वयं के नाट्य समूह ‘रंग विदूषक’ की स्थापना की थी और इस तरह देश-दुनिया में अपनी नाट्य शैली-संस्थान की वजह से बंसी कौल जी ने अपनी एक अलग पहचान बनाई। कौल साहब का सबसे मशहूर नाट्य प्रदर्शन, ‘केहन कबीर’ रहा, जो कि कालजई संत कवि कबीर की संग्रहित कृतियों पर आधारित था। जिसके लिए ही बाद में उन्हें ‘राष्ट्रीय कालिदास सम्मान’ से सम्मानित किया गया था।
बंसी कौल की संस्था ‘रंग विदूषक’ ड्रामा थिएटर ने विभिन्न शैलियों में करीब 75 से अधिक नाटक तैयार किए थे। कला के क्षेत्र में इस अभूतपूर्व अविस्मरणीय योगदान के लिए 2016 में , बंसी कौल जी को ‘कालिदास सम्मान’ से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें ‘बी.वी. करांथ स्मृति पुरस्कार’; ‘संगीत नाटक अकादमी सम्मान’ से भी नवाजा गया था।
हिन्दी साहित्य के लोकप्रिय नाटकों, कहानियों व उपन्यासों का भी उन्होंने मंचन किया जैसे— ‘अंधा युग’, रंग बिरंगे जूते, ‘आला अफसर’ ‘केहन कबीर’ आदि उनके चर्चित नाटक रहे। सुप्रसिद्ध रंग-निर्देशक राज नारायण दीक्षित ने बंसी कौल जी के निधन पर कहा कि, “भारतीय रंगमंच खासकर उत्तर भारत में एक पूरी पीढ़ी को तैयार करने में बंसी कौल के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। उनके रंगमंच और उससे इतर उनके कार्यों का मूल्यांकन होना चाहिए।”
बंसी जी के संस्थान ‘रंग विदूषक’ की सक्रियता के सहभागी कवि-नाटककार राजेश जोशी का कहना है कि, “सूत्रधार और विदूषक संभवतः भारतीय नाटक के दो ऐसे चरित्र हैं, जो उसे दुनिया के दूसरे नाटकों से अलग करते हैं, किन्तु विदूषक की दुनिया उतनी भर नहीं है, जितनी हम संस्कृत के नाटक या भारतीय रंगकर्म को लेकर किये गये शास्त्रीय विवेचनों से जानते हैं।” रा.ना.वि. के कार्यवाहक निदेशक प्रो. सुरेश शर्मा ने कहा—”बंसी कौल के निधन से हम सभी ने एक बेहतर थियेटर डायरेक्टर, डिजाइनर को खो दिया है।”
अवलोकन थिएटर ग्रुप के संस्थापक व निर्देशक श्री पंकज एस. दयाल जी, ने मुझे इस दुःख की घड़ी में कौल साहब को याद करते हुए कहा, “बंसी कौल जी और मेरी दोस्ती काफ़ी पुरानी है। सन 1976 में जब आगरा में शिविर लगा था तो मैं इसलिए उसमें शामिल नहीं हो सका था क्योंकि मैं संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली द्वारा; यू.जी.सी. ग्रान्ट मिलने के कारण आगरा विश्वविद्यालय, आगरा से थिएटर का डिप्लोमा कोर्स कर रहा था। उसमें कौल साहब का 15 दिन का शिविर था। जिसके लिए मैंने उन्हें शुभकामनाएँ व्यक्त की थी। बाद में कई नाटकों के दौरान उनसे मुलाक़ातें हुईं और थियेटर को लेकर चर्चाएँ भी। मगर दोनों की अपनी-अपनी व्यस्तताएँ रही। उनका थियेटर के प्रति समर्पण हमेशा ही हम सब के लिए प्रेरणा स्रोत रहा है।”
वर्तमान में सक्रिय देश-विदेश के अनेक रंगकर्मियों, नाट्य प्रेमियों, सिने जगत के अभिनेताओं व नेताओं ने सोशल प्लेटफार्मो के माध्यम से इस महान रंगकर्मी के असमय निधन पर अपनी गहरी संवेदनाएँ व्यक्त की हैं। मैंने भी दिल्ली के रंगमंचों पर उनके अनेक नाटक देखे थे जिन्होंने मुझे मन्त्रमुग्ध किया। ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे और उन्हें पुनः एक रंगकर्मी के रूप में जन्म दे। ॐ शान्ति।
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