“योग जीवन की औषधि”
योग जीवन की औषधि आधुनिक युग में आर्थिक सामाजिक , शैक्षणिक सभी क्षेत्रों में बढ़ती प्रतिद्वंदिता ने जीवन को तनावग्रस्त बना दिया है। हम व्यायाम द्वारा शीरीरिक स्फूर्ति तो पा लेते हैं पर मानसिक तनाव व रोगों से मुक्त नहीं हो पाते हैं। योग ऐसी साधना है जिसके नियमित अभ्यास से हम शारीरिक व मानसिक संतुलन स्थापित करना सीखते हैं।इसे हम स्वस्थ जीवन का विज्ञान मान सकते हैं। योग वह क्रिया है जो शारीरिक गतिविधियों और श्वसन क्रिया को नियंत्रित करके हमें रोग मुक्त करता है।योग मात्र शारीरिक क्रिया नहीं है वरन यह हमें मानसिक, भावनात्मक व आत्मिक विचारों पर नियंत्रण करने की शक्ति भी प्रदान करता है।भारत में योग की उत्पत्ति प्राचीन समय में योगियों द्वारा हुई थी।उनके अनुसार योग वह साधना है जो शरीर और मस्तिष्क के संतुलन के साथ ही प्रकृति के करीब आने के लिए ध्यान के माध्यम से किया जाता है।इस प्रकार योग शरीर और मन को प्रकृति से जोड़ कर आन्तरिक और बाहरी ताकत को बढ़ावा देकर हमें शारीरिक ,मानसिक व आत्मिक विचारों पर नियंत्रण करने योग्य बनाता है। आज अंधी स्वार्थपरता से वशीभूत मनुष्य खाद्य पदार्थों , दवाओं में विषाक्त पदार्थों का प्रयोग कर असाध्य बीमारियों को जन्म दे रहा है जिनका इलाज चिकित्सकों के पास भी नहीं है।वृद्धावस्था से पहले कमज़ोर अस्थियाँ हमें अपंग बना कर पराश्रित होने के लिए मजबूत कर देती हैं। आजकल विद्यालयों, महाविद्यालयों में विद्यार्थियों के शारीरिक ,मानसिक, बौद्धिक विकास के साथ-साथ पढ़ाई में उनकी एकाग्रता बढ़ाने की दृष्टि से योगाभ्यास पर विशेष ज़ोर दिया जा रहा है। योगाभ्यास शरीर को आंतरिक व बाह्य शक्ति प्रदान करता है तथा शरीर में प्रतिरोधी शक्ति बढ़ाकर विभिन्न बीमारियों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है। एकाग्रता से मानसिक तनाव दूर करता है फलस्वरूप चित्त शांत व शुद्ध बनता है तथाअच्छाई की भावना ,सद्व्यवहार व सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा मिलता है। योग का नियमित अभ्यास आत्म जागरुकता विकसित करके हमें अनुशासित बनाता है। योग मुद्रा, ध्यान, योग में श्वसन की विशेष क्रिया मानसिक तनाव से राहत दिलाते हैं।योग मनोविकारों को दूर कर मानसिक स्थिरता प्रदान करता है जिससे हम चिंता मुक्त होकर प्रसन्नचित्त रहते हैं। योग के महत्त्व को समझते हुए इसके लाभों के बारे में लोगों को जागरुक करने हेतु हमारे देश के वर्तमान प्रधान मंत्री माननीय नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा में योग की महत्ता पर भाषण देते हुए कहा था–“योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है; मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है; विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला है तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला है। यह व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवन- शैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है। तो आयें एक अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को गोद लेने की दिशा में काम करते हैं।” इतना ही नहीं उन्होंने “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” मनाने का प्रस्ताव भी सामने रखा। योग के महत्त्व को जान कर 21 जून को इसे “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” दिवस घोषित किया गया। तन मन की पीड़ा हरन सिर्फ एक है योग। बिन औषध सब जान लो मानव हुआ निरोग।। डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
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