ये रात बावरी मुझे बेचैन कर जाएगी
ये रात बावरी मुझे बेचैन कर जाएगी
सवा तीन तक मुझे नींद कहाँ आएगी
फ़ुरक़त में चलेगी तिरी याद की लूह
दिसंबर की सर्दी भी मुझको जलाएगी
आज अखरती है मिरी मौजूदगी जिसे
इक रोज़ उसे मिरी कमी रुलाएगी
जो समझते हैं अपनी दौलत को माँझी
उनकी अना ही उनकी कश्ती डुबाएगी
नेकियों के चराग़ हर सिम्त जलाती हूँ
मिरी तुरबत में रौशनी उन्हीं से आएगी
त्रिशिका श्रीवास्तव धरा
कानपुर ( उत्तर प्रदेश)