ये यादों की किस्तें जाने कबतक रुलायेंगी।
ये यादों की किस्तें जाने कबतक रुलायेगी,
क्या जीवन सफर में हमराही बन मृत्यु तक साथ निभाएंगी।
जज़्बातों की चिलचिलाती धूप, रूह के पाँव जलाएंगी,
या वक़्त की ठंडी छाँव, जलते क़दमों को सहलाएंगी।
निराशा की ये आंधियां, मेरे घर का अस्तित्व मिटाएंगी,
या तिनके जैसे हौंसलों से, मुझे फिर से जीना सिखलायेंगी।
हालातों की उड़ानें क्षितिज के, उस पार उड़ा ले जाएंगी,
या कटी पतंग की भांति, क़दमों के नीचे कुचलवाएंगी।
दर्द की इस बहती नदी में, शाश्वतता से छवि मेरी लहरायेगी,
या सागर की शांत सतह, मेरी आभा को चमकाएगी।
साँसों में आयी ये रिक्तता, धड़कनों को यूँ हीं तड़पाएंगी,
या आभाषी प्रतिबिंब बनाकर, तेरे होने का एहसास दिलाएंगी।
बेड़ियाँ ये संवेदनाओं की, व्यक्तित्व को बंदी बनाएंगी,
या कठोर अनुभवों की स्याही, फिर अध्याय नया लिखवाएंगी।
रात्रि के इस गहन अन्धकार में, राहें मेरी खो जाएंगी,
या हिम्मत के टिमटिमाते जुगनू, मंजिलों से मुझे मिलायेंगी।