ये दिल मेरा पागल
ये नीला नीला सा अम्बर,जब जब काला हो जाता है
तेरी क़सम ये दिल मेरा पागल ,मतवाला हो जाता है
फ़िर नशा चढ़ने लगता है यूँ, जिस्म सिहरने लगता है
तेरी यादों में भी गर्मी है,ओढ़ लूँ तो दुशाला हो जाता है
ये साग़र सी आँखें,नागिन जैसे गेसूं,चाँद सा चेहरा तेरा
ज़ाम है छलकता, पी लूँ ग़र मन मेरा मधुशाला जाता है
ऐ हसीना ये तेरी मुस्कान किसी मौसम से कम थोड़ी है
ऐसा मौसम के घिर आए तो समां हरियाला हो जाता है
तेरी ज़ुबा से निकली हर बात शायरी लगने लगी है मुझें
तू कह दे कोई बात कानों में,आलम निराला हो जाता है
__अजय “अग्यार