आज मैंने खुद से मिलाया है खुदको !!
आज उसने मुझको जो बुलाया, फिर से
मंजर फिर वही याद आया मुझे, झट से
जब जब भी नाम मेरा लेता है वो आजकल
सिहर सा जाता है दिलो-दिमाग मेरा उस पल
हालाँकि चाहती तो मैं भी हूँ सदा से
कि वो भी बुलाये कभी मुझे प्यार से
तरस ही गयी हैं निगाहें मेरी उसकी बातों को
कभी तो तरसेगा वो भी मेरे साथ को
कोशिशें भी हज़ार की कि बैठे मेरे पास वो
मुस्कुराकर बतलाये मुझे मन के राज वो
और बन जाएँ हम दो शरीर एक जान
बस ऐसे घुल जाये, एक दूजे को जाएँ जान
मगर आज जब उसने आवाज़ दी तो
लगा ही नहीं कि उसने बुलाया भी हो
हर पल उसके साथ का इंतज़ार रहता था जिसको
आज उसी ने ठुकरा दिया उसके निमंत्रण को
आखिर ऐसा क्या हुआ था आज उसको
कई महीनों की बेरुखी का असर था शायद उस पर
मायुसी इस क़दर हावी थी आज उस पर
क्योंकि हर बार वो जाती थी उस संग
और लौट कर आती थी तो सिर्फ अश्कों के संग
अब शायद भान हो गया है मुझे, ऐसा लगा
क्योंकि आजकल जब आईना देखती हूँ तो
पूछता है हर बार वो मुझको
कि कब तक सहेगी तू ये ज़िल्लत
कब तक लिखेगी अपनी बेइज्जती की दास्ताँ
कब तक इन अंधेरों में खुद को कोसती रहेगी
आखिर कब तक खुद को बेड़ियों में कैद रखेगी
और आज शायद वो दिन आ गया था जब
कोई असर नहीं किसी के जज़्बातों का मुझ पर
कोई असर नहीं किसी की बातों का मुझ पर
अच्छा लगा आज उसको ना कहकर
आज मैं फिर से मैं बन गयी थी
फिर से खुली हवा में झूम रही थी
आज मैंने खुद को अंधेरो से आज़ाद किया
आज मैंने फिर से उजालों से दोस्ती करली
आज लगा कि बस, जो पर कटे थे
वो फिर से उग आये हों जैसे
आज रचना की रचना फिर से हुयी हो जैसे
आज मैंने खुद को किसी की फ़िक्र से
किसी की बेवज़ह नाराज़गी से
किसी के अत्याचारों से
किसी की बेहूदगी से मुक्त कर लिया था
वो जो मुझे बाँधने के मनसूबे पाले था
आज अपना सा मुँह लेकर लौट रहा था
उसके आँसु आने से पहले
जिसकी आंखों से सैलाब आ जाता था
जिसकी ख़ुशी के लिए उसने
खुद को हर पल मरने दिया था
आज उसने फिर से जीना सीख लिया था
आज मैंने खुद को नयी ज़िन्दगी दी थी
हर बार उसके साथ जाने
उसको मौन या झगड़े की ज़िल्लत झेलने
और फिर नाउम्मीदी के साथ लौट आने
के बाद ये सोचे रहने कि
किस्मत ने कैसे मुर्दा अकड़ू के साथ बंधा मुझे
क्योंकि अकड़ तो मुर्दों में ही होती है न
ज़िंदादिल तो रिश्तों के लिए झुक भी जाया करते हैं
ये कैसा आदमी है जो बीवी के खाने के लिए भी
पैसे का हिसाब देखा करता है
जिसके ख़ुशी ग़म सब दौलत के नाम होता है
इन सब से मुक्ति मिली थी मुझको
आज उसने फिर से आवाज़ दी थी मुझको
और मैंने अपना रास्ता चुनकर
आज फिर खुद से मिलाया है खुदको !!
©️ रचना ‘मोहिनी’