ये जो मुहब्बत लुका छिपी की नहीं निभेगी तुम्हारी मुझसे।
गज़ल- 23
ये जो मुहब्बत लुका छिपी की नहीं निभेगी तुम्हारी मुझसे।
अगर ज़रा सा भी देख लेगी तो सारी दुनियां जलेगी मुझसे।
कसम खुदा की न जी सकूंगा अगर कलंकित हुआ कभी मैं,
नहीं थी उम्मीद ऐसी तुमसे ये सारी दुनियां कहेगी मुझसे।
खिला हुआ था कमल सा चेहरा न जाने क्यों रंगहीन है अब,
तुम्हारे चेहरे पे गम के बादल न देखी जाए उदासी मुझसे।
तुम्हें ज़रूरत है उस कलम की जो लिख सके दास्तां तुम्हारी,
तुम्हारे जीवन के कोरे पन्ने न बन सकेंगे कहानी मुझसे।
मैं एक प्रेमी जहां में ऐसा लुटा दिया सब बचा नहीं कुछ,
नहीं हमारे भी पास वो अब जो चाहती है दीवानी मुझसे।
……….✍️ सत्य कुमार प्रेमी