ये कैसी आज़ादी ?
बेड़ियाँ तोड़ने को कहा था-
तुम तो घर फूंक बैठी सखी!
आज़ादी ज़रूरी थी गलत बंदिशों से –
तुम तो रिश्तेदार ही तोड़ बैठी बहन!
चाहा था कि कानून की सुरक्षा कवच मुहैया हो तुम्हें
तुम तो दाँव-पेंच से उसके माँ- बाप को वृद्ध आश्रम छोड़ आईं!
सोचा था कि बराबरी करोगी कॅरिअर बनाने के लिए
तुम तो शराब और सीगरेट की होड़ में शामिल हो गई!
माना था कि आरामदेह कपड़े
पहनकर सहज लगेगा –
कहाँ पता था कि कपड़े ही असहज
और वो भी अभद्र!
जाना था -आवश्यक है कुछ समय स्वयं हेतु
पर भूल बैठी कि कुछ समय पर हक औरों का भी है!
तय करनी थी शिक्षा की ऊंची मंजिल
शिक्षकों को ही सम्मान न दिया -क्या होगा हासिल ?