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6 Jun 2024 · 1 min read

यूँ ही नहीं फहरते परचम

यूँ ही नहीं फहरते परचम
लड़ने पड़ते हैं
तूफानों के विरुद्ध
लगाने होते हैं
कश्तियों को किनारा
जलाने पड़ते हैं
आंधियों में भी चिराग
बुलन्द करने होते हैं
सत्ता के विरुद्ध आवाज
कालजयी होकर
जो फैलाते नव-प्रकाश।

मेरी काव्य-कृति : ‘पत्थर के फूल’ से,,,

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 81 Views
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