यूँ ही नहीं फहरते परचम
यूँ ही नहीं फहरते परचम
लड़ने पड़ते हैं
तूफानों के विरुद्ध
लगाने होते हैं
कश्तियों को किनारा
जलाने पड़ते हैं
आंधियों में भी चिराग
बुलन्द करने होते हैं
सत्ता के विरुद्ध आवाज
कालजयी होकर
जो फैलाते नव-प्रकाश।
मेरी काव्य-कृति : ‘पत्थर के फूल’ से,,,
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।