यूँ गहरी झील सी आँखों से…
गिरा हूँ पर सँभलने का हुनर भी जानता हूँ मैं
खड़े होकर के चलने का हुनर भी जानता हूँ मैं
बदल सकता हूँ खुद को भी जमाने के लिए लेकिन
जमाने को बदलने का हुनर भी जानता हूँ मैं
हकीकत में मेरी तासीर शीतल चाँद जैसी है
मगर सूरज सा जलने का हुनर भी जानता हूँ मैं
यूँ गहरी झील सी आँखों से मत देखा करो मुझको
कि बनकर अश्क ढलने का हुनर भी जानता हूँ मैं
फँसा हूँ आप ही आकर मैं तेरे जाल में जालिम
मगर बचकर निकलने का हुनर भी जानता हूँ मैंं
छुपे हो आस्तीनों में तो है ये भी मेरी मर्ज़ी
वर्ना फन को कुचलने का हुनर भी जानता हूँ मैं