युद्ध का आखरी दिन
लड़े बड़े शोर से
निर्भय और जोश में ।
अंग से अंग टूटे
युद्ध के इतिहास में ।।
कौन देश पाया होगा?
क्या वेश पाया होगा ।
रक्त से रंजित धरा में
कुछ न शेष पाया होगा ।।
स्थिति विकराल हैं
चारों ओर हा हा कार है ।
देह पर आयुध का
ये कौन–सा परिणाम है ।।
यही कल्पना का संसार है
मानवों का प्यार है।
कौन है जो लड़ रहे
यह भी अपमान है।।