याद मीरा को रही बस श्याम की
1)धड़कनों में ज़लज़ले भी ख़ूब थे
उन दिनों के रतजगे भी ख़ूब थे
2)याद मीरा को रही बस श्याम की
बालपन के फलसफ़े भी ख़ूब थे
3)पी गई विष को भी बस इक घूंट में
प्रीत के धागे बंधे भी ख़ूब थे
4)भीड़ ने देखो जला दी बस्तियां
पास उनके असलहे भी ख़ूब थे
5)मर गई और मिट गई वो दरबदर
घाव ज़ुल्मों के हरे भी ख़ूब थे
6)आओ फिर उस दौर में वापस चलें
ग़म अगर थे क़हक़हे भी ख़ूब थे
7)एक टक तकती रही उसकी नज़र
मेरी जां के हौसले भी ख़ूब थे
8)मेरे घर के पास तक आए नहीं
और मुझे वो देखते भी ख़ूब थे
9) मंतशा मैं क्या दिखाती दर्द ओ ग़म
ज़ख़्म दिल के तो हरे भी ख़ूब थे
🌹मोनिका मंतशा🌹