याद आते हैं वो
जब भी देखता हूं
तन्हा सड़क पर
बारिश की गिरती हुई बूंदें
याद आते हैं वो!
चलता हूं जैसे
हाथों में हाथ लेकर
बाहों को थामते हुए
बतलाते हुए
प्रेम – सृष्टि की परिभाषा
वो दौड़ कर सामने
फैलाती हाथ उठाकर
बूंदें चेहरे पर गिराकर
फिर सिमटती हुई पंखुड़ियों-सी,
ठिठुर कर जैसे
गले लग जाते हैं वो!
फिर सहसा उछल पड़ती
उछालती हाथों में थाम जल को
भरती हुई मुट्ठी में कल को
मैं होता खुश उसे झूमते हुए
साथ झूमता,
कुछ गुनगुनाता
मस्तक को उसके चूमते हुए
वो लिपट जाती मानो मन से
चिपकता दुकूल भीगा तन से
नयनों से नयनों को मिला
गीली जुल्फें बिखराते हैं वो
सच कहता हूं
याद आते हैं वो।।
रोहताश वर्मा ‘मुसाफ़िर’