यादों के उजाले
यादों के उजाले
1
बच्चे मन के सच्चे,
सखाओ के साथ खेलते थे।
लड़ते झगड़ते थे उस दौर में,
फिर मस्ती करते मिलते एक ठौर में।
याद आती है उस पुराने सुनहरे पल की,
जब छा जाते हैं यादों के उजाले वो पल की।
2
मां के हाथ का खाना ,
भाई के साथ सैर पर जाना।
दीदी का प्यार,पापा का दुलार ,
कैसे भूल जाऊं बता दो मेरे यार।
याद आती है उस पुराने सुनहरे पल की,
जब छा जाते हैं यादों के उजाले वो पल की।
3
गांव का ओ स्कूल ,
रंग बिरंगे होते थे ओ फूल।
गणित में देते थे खूब सवाल ,
सही होने पर गुरुजी कहते थे कमाल।
याद आती है उस पुराने सुनहरे पल की,
जब छा जाते हैं यादों के उजाले वो पल की।
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कवि डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभवना, बलौदाबाजार (छ.ग.)
मो. 8120587822