यादों का नशा
मैं तो लड़खड़ा के चला ही था कि
संभलने वाले भी गिर गए थे
चलो हुआ यह भी ठीक कि हम
तुम्हारी यादों में घिर गए थे
पिलाने वाले या पीने वाले
वहांँ थे जो सब बिखर गए थे
तुम्हारी बातों का था वह आलम
ना पीने वाले भी गिर गए थे
दुखों का सागर दुखों की कश्ती
बढ़ा के हम भी उतर गए थे
दुखों को सुनकर वो सुनने वाले
कहेंगे हम कब संवर गए थे
संवरना क्या था और क्या बचा था
जो कुछ बचे थे बिखर गए थे
बिखर के यूं हम खड़े हुए तो
संभलने वाले भी गिर गए थे
मैं तो लड़खड़ा के चला ही था कि
संभलने वाले भी गिर गए थे
-मोहन