यह कौन सी तहजीब है, है कौन सी अदा
नाराजगी पड़ोसी से, पड़ोसन पे यूॅ॑ फिदा
यह कौन सी तहजीब है, है कौन सी अदा
यह कौन सी तहजीब है………..
देखा नहीं कि हमको तुम यूॅ॑ मुॅ॑ह को फेरते
आई नई पड़ोसन का तुम रस्ता क्यों घेरते
वाजिब नहीं ये बात जो करते हो तुम सदा
यह कौन सी तहजीब है………..
माना कि वो गुलाब हम पतझड़ के पात हैं
पूनम की चाॅ॑द वह हम अमावस की रात हैं
कुदरत के खेल हैं सब किसी की नहीं खता
यह कौन सी तहजीब है…………
देखा जहां भी उसको ही निहारते हो क्यों
शीशा है इसे दिल में हुजूर उतारते हो क्यों
होती नहीं है अच्छी ये नज़ाकत है या अदा
यह कौन सी तहजीब है…………
तारीफ पे तारीफ की हद ही पार हो चली
पड़ोसन ‘V9द’ कैसे गले का हार हो चली
पड़ोसी से क्यों किसी की होती नहीं रजा
यह कौन सी तहजीब है………….