यह कैसा पागलपन?
आखिर यह कैसा पागलपन?
दुल्हन चाहिए गोरी
बीवी चाहिए गोरी
बहू चाहिए गोरी
टेलीविजन के लिए भी
एंकर चाहिए गोरी
भारत जैसे गर्म देश में
कहाँ से आएगी गोरी-गोरी
इतनी सारी छोरी?
व्यापारिक षड्यंत्र में उलझकर
सारे के सारे लोग
गोरा रंग बनाने वाली क्रीम
खरीदने में मशगूल हो गए हैं,
इस जमाने के सारे लड़के
सारे कलाकार
सारे के सारे नियोक्ता भी
गोरे रंग के मुरीद हो गए हैं।
भूलो मत यारों
गोरे रंग और काली जुल्फें
सौन्दर्य के मिथक हैं,
मगर हकीकत जिन्दगी तो
बाजारों के मायाजाल से
पूरी तरह पृथक हैं।
आप जैसी भी हो
वैसी ही बहुत खूबसूरत
और सच्ची हो,
आप बहुत अच्छी हो।
इन बाजारों का क्या
वो तो साँवलों के देश में
गोरा रंग बेचता है,
और गोरों के देश में
साँवला रंग परोसता है।
नारीशक्ति पर आधारित मेरी द्वितीय कृति
एवं प्रकाशित 19 वीं कृति : ‘बराबरी का सफर’ से,,,
बस चन्द पंक्तियाँ।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
हरफनमौला साहित्य लेखक।