मौसम
मौसम करे है कैसी, करामात क्या कहूँ।
पल पल बदल रहे हैं ख़यालात क्या कहूँ।।
छाई जो बदली याद, मुझे आ गये सनम।
दिल मे उमड़ते प्यार के , जज़्बात क्या कहूँ।।
मुझको सजा कुबूल है जो प्यार है गुनाह।
कैसे करूँ मैं दिल की,वकालात क्या कहूँ।।
शौकीन हो गयी हूँ नज़र की तेरी सजन।
नज़रों से जो किये थे ,इशारात क्या कहूँ।।
शक है जमाने को ,कि हमें प्यार हो गया।
करते हैं लोग कैसे,सवालात क्या कहूँ।।
आया वसंत तो, खिले हैं फूल हर तरफ।
मधुमास की वो पहली ,मुलाकात क्या कहूँ।।
ठंडी हवा लिपट के, जो दामन को छू गयी।
एहसास तेरा हो रहा,हर बात क्या कहूँ। ।
पतझड़ करीब आया ,तो तन मन झुलस गया।
कैसे कटी विरह में ,मेरी रात क्या कहूँ।।
भीगा जो और भी तो सुलगने लगा बदन है।
भड़काती आग और ये बरसात क्या कहूँ।।
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव साईंखेड़ा