“मैं कलमकार हूँ”
क्या सच, क्या गलत
अच्छी तरह समझ जाता हूँ,
मैं कलमकार हूँ
कलम का धर्म निभाता हूँ।
जब नीति को अंगूठा दिखा
हावी होती राजनीति है
घूँघट की ओट में
मुस्कुरा उठती अनीति है
तब हृदय में सहस भरकर
लोगों को जगाता हूँ,
मैं कलमकार हूँ
कलम का धर्म निभाता हूँ।
जब देश के कर्मवीरों के
उपहास उड़ाये जाते हैं
सत्ता की करतूतों से
जन-मन आँसू बहाते हैं
तब अहंकार के पुतलों को
उनकी औकात दिखाता हूँ,
मैं कलमकार हूँ
कलम का धर्म निभाता हूँ।
जब चोर पुलिस के बीच
यारी हो जाती है
गलत को सही बताने की
बीमारी हो जाती है
तब मजबूर होकर
कलम को हथियार बनाता हूँ,
मैं कलमकार हूँ
कलम का धर्म निभाता हूँ।
-डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य और लेखन के लिए
लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त-2023