139. मैं अकेला ही ठीक हूँ
साल के होते बारह महीने,
महीने का तीस दिन ।
पल पल याद करता हूँ मैं,
कैसे कटेगा मेरा यह दिन ।।
नींद चैन अब आती कहाँ है,
लगा रहता है मुझे तेरा ही आस ।
मैं हरपल याद करता हूँ तुझको,
पर लगता नहीं मेरी बुझेगी प्यास ।।
सुबह से दोपहर, दोपहर से शाम,
शाम से रात, फिर भी वही बात ।
कभी फुर्सत नहीं मिलती तुम्हें,
अब मुझसे करने को मुलाकात ।।
मैं आँखों में आँसू आने नहीं देता,
मगर पल पल मैं तड़पता हूँ ।
तुम्हें क्या पता हर रोज,
मैं कैसे जीता मरता हूँ ।।
एक दिन का चौबीस घंटा,
मैं किस तरह बिताता हूँ ।
तुम्हें क्या मालूम होगा,
मैं अपना आँसू कैसे छिपाता हूँ ।।
चेहरे पर हँसी लाने की कोशिश करता हूँ,
पर अंदर आँसुओं का सैलाब रहता है ।
शायद मैं किस्मत का अभागा हूँ ,
इसलिये कुछ ज्यादा ही पछताता हूँ ।।
पहले जब भी बात करता था तुमसे,
ऐसा लगता था जैसे, तुम भी मुझपे मरती थी ।
पर किसी का सम्मान करने के लिये,
शायद मेरा चुप रहना मेरी सबसे बड़ी गलती थी ।।
दिल जब टूट जाता है,
तब समझ में आता है ।
कोई अपना ही क्यों न हो,
गलत का विरोध करना चाहिए ।।
एक से दो और दो से चार होना,
शायद ये गलती हो गया हमसे ।
दिल की बात दिल में रखते हैं,
आखिर ये बात कहेंगे किसे ।।
पहले तो हम तीन थे,
फिर भी हमसब खुशनसीब थे ।
अब तो हम चार हैं,
फिर भी बदनसीब लाचार हैं ।।
दिलवाली नहीं है यहाँ,
केवल दिल्लगी करनेवाली है ।
इसलिये अब दिल नहीं करता,
किसी से दिल लगाने का ।।
किसपर भरोसा करोगे यहाँ,
सब अपनेआप में मगन हैं ।
पहले मैं अकेला ही ठीक था,
अब भी हम अकेले ही ठीक हैं ।।
कवि – मनमोहन कृष्ण
तारीख – 30/11/2022
समय – 03 : 08 (रात्रि)
संपर्क – 9065388391