*मेले में ज्यों खो गया, ऐसी जग में भीड़( कुंडलिया )*
मेले में ज्यों खो गया, ऐसी जग में भीड़( कुंडलिया )
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मेले में ज्यों खो .गया ,ऐसी जग में भीड़
आपाधापी में बचा ,किसका अपना नीड़
किसका अपना नीड़ ,कहाँ दो पल टिक पाता
हुई सुबह तो काम ,रात गहरी घर आता
कहते रवि कविराय , संग बच्चे कब खेले
छूटा घर परिवार , भ्रमण तीर्थाटन मेले
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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नीड़ = घोंसला ,आश्रय