मेरे क़त्ल की ख़बर
मेरे क़त्ल की ख़बर किसी को पता क्यों नहीं,
उनकी बेरुखी ने मुझे जिन्दा तो नही छोड़ा।
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जिस दीपक के उजियाले से तेरा चेहरा रोशन होगा,
उस दीपक के नूर की ख़ातिर हैं ये शमां जलाए है,
काश कोई हमको बतला दे,
तेरी आँखों के दीपक में कितने राज़ समाए है।
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कहाँ गई उनके चेहरे की मासूमियत,
अब तो उनकी आँखों से ही डर लगता है।
रात को कब्रगाह का सन्नाटा कुबूल है,
पर हमें ख़ुद की साँसों से भी डर लगता है।
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उनसे जी भर के कभी रूबरु न हो सके
जिनसे ख़्वाबों में मिले बिना सहर नहीं होती।