मेरे पापा
शब्द नहीं है मेरे पास , पापा!
कैसे करूँ आपको व्याख्यान।
ऐसी कोई कलम नहीं बनी,
जो लिख सके आपका पुरा गुणगान।
कैसे रंग भरूँ मैं,
आपके प्यार को पापा,
जब आपका प्यार निश्चल था,
मेरे लिए अमृत के सामान ।
फिर भी कुछ लिखने की
जो मैं हिम्मत कर रही हूँ ,
वह आपके प्यार से ही
मुझे मिला है पापा।
मैं आपके बिना
कुछ भी नहीं थी,
माँ मेरी रचनाकार थी तो,
आप मेरे मार्गदर्शक थे ।
ईश्वर को मैंने कभी
धरती पर नहीं देखा,
पर उसका रूप मैंने आपके
रूप में देखा है पापा।
पापा ! आप मेरे वो आधार है,
जिसने मुझे मजबूती के
साथ पकड़कर रखा,
और कभी मुझे गिरने नही दिया।
दसों दिशाओं की तरह आप
मेरे लिए सुरक्षा का ढाल सदा बने रहे,
और मेरे उपर आने वाले हर दर्द को,
आपने खुशी से अपने ऊपर लेते रहे।
पर मेरे आँखो मै आँसू आने न दिया।
कैसे भुल जाऊँ जब मै आपके
कंधे पर खड़ी होकर कहती थी।
पापा, देखो मै आपसे बड़ी हो गई,
और मेरे इन बातों पर आप
खुशी से ताली बजाते थे।
वह आपका गहरा प्यार ही था,
जो अपने बच्चों को
अपने से ऊपर देखकर
आपको बेहद खुशी मिलती थी।
मैंने कभी आपको बैठे हुए नहीं देखा,
और न ही थका हुआ हूँ कहते हुए सुना ,
जाड़ा ,गर्मी, बरसात मैंने कभी
आपको आराम करते हुए नहीं देखा।
पैसा आपके पास था या नहीं था।
आपने कभी हम सब से जताया ही नही,
न ही हमारे फरमाइशों को
पूरा करने मे कोई कसर छोड़े।
मै इतना ही जानती हूँ पापा
हमारे जन्म पर खुशियों की
बौछार करने वाले।
हमारे हर किलकारियों पर
तन-मन न्योछावर करने वाले ।
हमारे नादानियों को समझ,
नई चाल देने वाले,
हमारे गिरने से पहले ही
हमारा हाथ थाम लेने वाले।
साया बनकर हमेशा साथ
हमारे सदा रहने वाले,
आप थे पापा ।
लाख चाँहू मैं आपका उपकार
कभी चुका नहीं सकती हूँ।
मेरी खुशी के लिए आपने
जो बलिदान दिया उसको
कभी भूला नही सकती ।
मेरे जीवन को सरल बनाने के लिए
जिसने अपना सब कुछ
न्योछावर कर दिया,
वह आप ही तो है पापा।
जिसे ईश्वर ने पापा की काया
के रूप मै मुझे दिया है।
बचपन से जो बिना किसी
शर्तो के सहारा दिया है,
उस वरदान रूप मेरे लिए
आप है पापा ।
क्या कहूँ मै आपको पापा
ईश्वर या भगवान ,
कैसे करूँ मै आपके
प्यार का गुणगान।
बस करती हूँ मै पापा आपको,
शत-शत बार प्रणाम।
~अनामिका सिंह
नई दिल्ली