मेरे खामोश होते ही
मेरे खामोश होते ही
मेरे आसपास सन्नाटा छा जाता है
तो क्या सारा कोलाहल
मेरा ही परावर्तन है
कोई और नहीं
मैं ही स्वयं से बोल रही थी
कोई और नहीं
मैं ही स्वम् के साथ हँस रही थी
और चुप होते ही
पसरा सन्नटा मुझे बता देता है,
कि मैं ही मेरा मनोरंजन हूँ,
मैं स्वयं का आनंद
मैं ही मेरा कोलाहल
मैं ही मेरा परावर्तन।
~माधुरी महाकाश