सवालिया जिंदगी
मेरी मंजिल मुझे मुक्कमल
पर जिंदगी तेरा मुकाम क्या है
मेरा तो मर्ज इश्क-ए-हकीकी
पर तेरा ये इश्किया जुकाम क्या है?
इस गुमनाम सी जिंदगी में
भूल चुका हूं कि नाम क्या है
भागते वक्त संग घिसते-घिसटते
पूछता हूं कि आराम क्या है ?
जैसे पिजराबंद उड़ते से पूछे
तेरी आजादी का दाम क्या है
अभी तक खुद को न जाना
कैसे बताऊ कि राम क्या है?
मेरे हाथों में रहती कुदाल
चौरस की गोटी का काम क्या है
बिष-अपशिष्ट उठा नीलकंठ से
नीलकाय होने का परिणाम क्या है?
जन-मन प्रदूषण का बिष
पी चुका तो जहर-जाम क्या है
गर्त गिरती गरिमा-गर्वगाथा की
कोई बताये रोकथाम क्या है ?
अब सूझता ही नही ऐसे में
इलाज क्या और इंतजाम क्या है
रामबाण औषधि न सही
पर इस सिरदर्दी का बाम क्या है?
सारी उम्र नासमझी में बीती
अब जाना जिंदगी का कलाम क्या है
अब मैं भी तो चलूंगा हरपल
जैसे नदी न जाने विश्राम क्या है ?
जब मौत से ठनी जंग-ए-जिंदगी
तो फिर ये निरा निजाम क्या है
रखना जिंदा जज्बा और जिंदगी
इससे बडा़ और पैगाम क्या है ?
~०~
मौलिक एवं स्वरचित: कविता प्रतियोगिता
रचना संख्या -१३: मई २०२४.©जीवनसवारो