मेरी चाहत और तुम
तुम खामोश दरिया हो ,तुममे खुशी की लहरों का कल- कल राग सुनना चाहता हुँ,
चुप सी रहती है गहरी और खमोश आंखे
इनमे चंचलता और चमक देखना चाहता हूँ।
वक्त के थपेड़ों ने इस कदर तोडा तुम को और हमको
उस टुटती हुई दुनिया को फिर सजाना चाहता हु,
वेश्क दुनिया की रिवाजो मे उलझे है हम तुम
उन बंधनो से निकल कर तेरा साथ चाहता हुँ।
जब पास होती हो तो अजीब सा अहसास भर जाती हो,
उसी अहसास को तुझमे भरना चाहता हुँ,जीवन का धरातल बंजर सा लगता है बिना तेरे,
उस बंजर मे प्यार का अंकुर बोना चाहता हु।
आशा है समझ चुकी हो दिल की बात ,
तुम क्या हो मेरे लिए और तुमको इतना क्यो चाहता हू।