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22 Feb 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल

ले इल्ज़ाम सर अपने मसरूफ हो गया
ज़माने की नजर में जो था बेकार निकला

हर राह परेशां हो गई मोड़ से पहले
वापसी के लिए जो तलबगार निकला

सरे बाज़ार भी कबूल लेगा मोहब्बत
दिल चुराने का जो गुनहगार निकला

बुन गया हूँ खुद को पिरोते पिरोते
कि सुलझाना मुझे ज़रा दुश्वार निकला

बारिशों से सौदा था आँखों का आज
भटकी हुई नाव का वही कगार निकला

काजल सजाया है ख्वाब को जला कर
आँखों में भरा फिर भी एतबार निकला

वो शख्स ख़ामोशी में कहा करता है
ज़रा क़रीब हुआ तो शोर बेशुमार निकला

रवायतों में रिहाइश भाती नहीं हमें
उड़ानों से इश्क़ क्योंकि बेइख़्तियार निकला ।
@shaily vij

Language: Hindi
Tag: Poem
1 Like · 31 Views
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