नहीं हूँ अब मैं
नहीं हूँ अब मैं,
वैसा दीवाना तेरा,
जैसा तू कभी कहती थी,
कि दीवाना मुझसा नहीं कोई,
और हो गया था तब मैं,
गुमनाम और बदनाम तेरे प्यार में,
अपनी जिंदगी से भी ज्यादा,
अपनी जान तुमको मानता था,
मगर अब होने लगी है नफरत।
नहीं हूँ अब मैं,
वैसा तरफदार तेरा,
जो करता था हमेशा,
तारीफ और वाह वाह तुम्हारी,
और छोड़ दिया था तुम्हारे लिए,
अपना परिवार और साथियों को,
जो देखता था बस तेरा ही ख्वाब,
मैं खुद को बर्बाद करके,
तुमको पाने के लिए।
नहीं हूँ अब मैं,
हमेशा तुम्हारे बारे में सोचने वाला,
भरता हूँ अब मैं पहले अपना पेट,
और जो बचता है शेष मेरे पास,
खिला देता हूँ उसको श्वानों को,
क्योंकि वो इंसान से ज्यादा वफादार है
अब जी आज़ाद हूँ मैं,
और नहीं करता हूँ अब मैं,
किसी की गुलामी और चापलूसी।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)