मेरी कलम
कल मैंने एक रिश्ते को पहचान दी थी
आज उसी की टूटी हुई डोरी मेरे हाथ में थी
कल तक जिसे अपना सबसे करीबी समझा
उसी से दूर होने के बाद आज मेरे दिमाग में थी
मेरे आंसुओं से ज्यादा अच्छे से उसे कौन जानेगा
पर आज मेरी आंखों में कोई बरसात ना थी
दुख का दरिया कभी समंदर कभी तूफान बना
आज भी दुख था मगर वह बात ना थी
विश्वास जब भी किया धोखा खाया
यह बात अब भी मेरी कलम लिखने को तैयार ना थी।