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12 Jan 2022 · 3 min read

मेरी कलम से:स्वामी विवेकानंद को शब्द श्रद्धांजलि

मेरी कलम से:स्वामी विवेकानंद को शब्द श्रद्धांजलि

इस लेख के माध्यम से मैं एक ऐसी महान विभूति के जीवन को आपके सामने प्रस्तुत करने जा रही हूँ, जिससे आप प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं। ये हैं स्वामी विवेकानन्द। इनकी जीवनी, आपके जीवन की नींव बन सकती है। यदि आपके जीवन को ऐसी मज़बूत नींव मिलेगी तो आपका जीवन भी दमदार बन जायेगा।
स्वामी विवेकानन्द के जीवन की नींव थे उनके बेमिसाल गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस। स्वामी विवेकानन्द का जीवन गुरु भक्ति की मिसाल है। श्री रामकृष्ण परमहंस के पास आकर विवेकानन्द की सत्य की खोज पूरी हुई और वे एक ऐसे लाजवाब शिष्य बने जिन्होंने अपने गुरु की शिक्षाओं को पूरे विश्व में फैलाया।

स्वामी विवेकानंद का जीवन वर्तमान समय मे आदर्श है उनके जैसा विचारशील युवा अब होना मुश्किल है।आज जब की पश्चिम की देखा देखि हम अपनी बहुमूल्य सम्पदा अपनी संस्कृति को त्याग कर पाश्चात्य संस्कृति के रंग मे रंग रहे हैं तो ऐसे मैं विवेकानंद का स्मरण किया जाना आवश्यक है। विवेकानंद ने जिस संस्कृति को हम अनदेखा कर रहे हैं ।उसे यूरोप मे अपने ओजपूर्ण भाषण से ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया।
स्वामी विवेकानंद के संदर्भ मे कई ऐसे प्रसंग है जो उनकी महानता को प्रदर्शित करते हैं।जैसे स्वामी विवेकानंद जब शिकागो सम्मेलन मे भाग लेने गए तो वहाँ इस बात की बड़ी चर्चा थी की विवेकानंद ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं तो एक सुंदर युवती उनकी परीक्षा लेने के उद्देश्य से वहाँ पहुंची युवती ने निवेदन करते हुए कहा’महाराज मैं आपकी ही तरह एक तेजस्वी पुत्र चाहती हूँ”।विवेकानंद ने तत्क्षण उस युवती से कहा तो आज से ही आप मुझे अपना पुत्र मान लीजिये ओर इस तरह उन्होने उस युवती को अपने उत्तर से शर्मिंदा कर दिया।
किन्तु कभी कभी ये प्रश्न उठता है की जब कभी भी इस देश के गौरव की बात होती है तो हम सम्मान से कहते है की हम उसी देश के हैं जहां स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष हुए पर जब बाहर के देशों से आई हुई महिला पर्यटकों के साथ दुर्व्यवहार व छेदखानी की घटनाएँ होती है तो हम भूल जाते हैं की हम उस महापुरुष के गौरव को भी खंडित कर रहे है, जिसने अपने अदभूद उत्तर से उस युवती को निरुत्तर कर दिया जब स्वामी विवेकानंद विदेश गए तो उनकी भगवा वस्त्र ओर पगड़ी देख कर लोगों ने पूछा “ आपका बाँकी सामान कहा है….?” स्वामी जी बोले “बस यही सामान है तो कुछ लोगों ने व्यंग किया कि “अरे! यह कैसी संस्कृति है आपकी? तन पर केवल एक भगवा चादर लपेट रखी है कोट – पतलून जैसा कुछ भी पहनावा नहीं है… ?” स्वामी विवेकानंद मुस्कुराए ओर बोले “हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से भिन्न है आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते हैं जबकि हमारी संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है संस्कृति वस्त्रों मे नहीं, चरित्र के विकास मे है”।
यदि आज के वर्तमान दौर मैं स्वामी विवेकानंद पुनः इस धरा पर अवतरित हों तो उन्हें नई चुनौतियों का सामना करना होगा तब घर के संस्कारों को बाहर दूर तक फैलाना था ओर आज पहले घर मे घुस ओर बस चुके बाहर के कुसंस्कारों को हटाना होगा हर बार हम विवेकानंद जी की जयंती मानते हैं पर कभी भी उनकी बातों मे खुद अमल नहीं करते
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद

Language: Hindi
Tag: लेख
634 Views
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