मेरा शहर
शहर शहर और देश विदेश भी घूम लिया मैं इतने साल।
वापस आकर कुछ दिन रुक कर देखा जो अपने शहर का हाल।।
कुछ तो बदल गया है शहर भी, कुछ बदली हर व्यक्ति की चाल।
कुछ भी अपना सा नहीं लगता क्या हो गया मेरे शहर का हाल।।
क्या बचपन था क्या साथी थे हर चेहरा था जाना पहचाना।
किसी भी घर में घुस जाते थे हर घर में थी अपनी खास पहचान।।
आज पूछने पर भी बता नहीं सकता कोई अपने पड़ोसी का नाम।
पहले पड़ोस की आंटी आकर बता देती थी हमको अपने भी काम।।
मिलने जुलने का वक्त नहीं किसी को खत्म हो गई जान पहचान।
सब अपनी अपनी ही धुन में मगन और ठलुए भी कर रहे सत्तर काम।।
मोबाइल में सिमट गया हर रिश्ता दोस्त पड़ोसी और शायद खानदान।
शहर में मोहल्ले गली कूंचे नहीं दिखते बस दिखते हैं छोटे बड़े मकान।।
कहे विजय बिजनौरी देखकर अपने शहर का बिगड़ता ये हाल।
आओ मिलकर अलख जगाएं और बदले अपने इस शहर का हाल।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी।