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4 May 2024 · 1 min read

मेरा भारत जिंदाबाद

उम्र अठ्ठारह में घर छोड़ा,
कुछ बनने को निकल पड़ा।
मात पिता संगी परिजन तज,
नए कुटुंब में आन खड़ा।

नव बदलाव हुआ है मुझमें,
तन मन है चट्टान बना।
सिर पर टोपी वर्दी पहने,
आंखों में स्वाभिमान घना।

वर्दी बूट पहनकर मां मैं,
ले बंदूक टहलता हूँ।
देख सितारे निज कंधों पर,
गर्व से सहज बहलता हूँ।

ड्यूटी का खूब भान है मुझको,
लिखनी विजय कहानी है।
सरहद के दायित्व मुझे मां,
बिल्कुल याद जुबानी हैं।

है विश्वास देश का मुझपर,
सिर पर ध्वजा तिरंगा है।
भारत माता की गोदी में,
तेरा बेटा चंगा है।

सियाचिन की अतिसय सर्दी,
मुझे डिगा न पाती है।
अथवा मरु की भीषण गर्मी,
न ही मुझे सताती है।

सरहद की रखवाली माता
मुझको लगे इबादत सी।
अपना फर्ज निभाऊं दिल से,
अब तो बन गयी आदत सी।

शाम सुबेरे रात दिवस भर,
चलकर गस्त लगाता हूँ।
अगर हिमाकत करता दुश्मन,
हद से दूर भगाता हूँ।

ऑप विजय, कैक्टस हो या,
मेघदूत, बुलरोज,पवन।
पराक्रम,ब्लूवर्ड,व गंगा,
वीरों के ये यज्ञ हवन।

उनकी गाथा सुनकर पढ़कर,
सीना चौड़ा हो जाता।
मैं भी करूँ कोई ऑपरेशन,
मेरे मन में भी आता।

मन गदगद तब हो जाता जब,
ध्वज को दिया सलामी है।
खून पसीना देश को देना,
मैनें भर ली हामीं है।

मरना वधना दोनों जानूं,
रग रग भरी वफादारी।
उसको कभी कहीं न छोडूं,
जिसने भी की गद्दारी।

यही तमन्ना मेरे मन में,
धरती सदा रहे आबाद।
अंतिम बूंद लहू की बोले,
मेरा भारत जिन्दावाद।

Language: Hindi
23 Views
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