मेरा बचपन
मेरा बचपन —–
काश कोई मेरा
ऐसा बचपन लौटा देता–
भूख लगी है माँ
कुछ खाने को दे दो,
रूखा-सूखा जो है दे दो
माँ, तुम जल्दी दे दो ना
मेरी बात मान लो ना
सारे मित्र वो देखो
प्रतीक्षा कर रहे हैं
वो देखो वहीं से अमन,
अमन चिल्ला रहे हैं
मैं कुछ खा लूँ तब चलूँ
सारे मित्रों संग मिल-बाँट कर खेलूँ
बिट्टू, लल्लू, बिल्लू, बब्लू,
कल्लू, मंगरू, झगरू सब होंगे |
लुका-छिपी, गिल्ली डंडा, दोल्हा-पात्ती
चिक्का, कबड्डी आज तो खेल सब होंगे
माँ, तुम खाने को दे दो
रूखा-सूखा जो है दे दो
काश कोई मेरा
ऐसा बचपन लौटा देता !!!
दादू माँगें फिर से बचपन
दादी माँगे फिर से बचपन
बापू कहें चाहूँ ऐसा बचपन
माँ मेरी चाहे ऐसा ही बचपन
चाचू भी मुझसे बचपन माँगें
चाची मेरी तब खिलखिला के हँसे
बोली, तब मैं किससे बचपन माँगूँ
मैं भी तो अब बचपन में जाना चाहूँ
बचपन है भाई कितना प्यारा
सबको लगे क्यूँ इतना न्यारा
सब बच्चा बनना चाहते हैं
हर कोई बचपन में जाना चाहे
सब क्यों जिम्मेदारियों से भागना चाहें
… और कहते फिरते हैं —-
माँ, तुम खाने को दे दो
रूखा-सूखा जो है दे दो
काश कोई मेरा
ऐसा बचपन लौटा देता !!!
वो निडर होकर खेलना-कूदना
वो निर्भय होकर कूदना-फाँदना
वो आपस में लड़ना और झगड़ना
वो आपस में पटका-पटकी करना
फिर वापस गल बँहिया मिलना
और फिर मौका मिलते झगड़ पड़ना
कभी कुत्तों को दौड़ाना तो
कभी चिड़ियों के पीछे भागना
कभी तितलियों को पकड़ना तो
कभी जुगनुओं को धर दबोचना
कभी पेड़ों पर चढ़ना-उतरना तो
कभी बेमतलब का दौड़ लगाना
फिर अमराई से आम चुराकर
और गछवाहे की गाली सुनना
माँ, तुम खाने को दे दो
रूखा-सूखा जो है दे दो
काश कोई मेरा
ऐसा बचपन लौटा देता !!!
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दिनेश एल० “जैहिंद”
03. 02. 2017