अन्नदाता कृषक
अन्नदाता कृषक (पंचचामर छंद)
किसान अन्नदान दे रहे समस्त विश्व को।
असीम स्नेह रक्तदान शौर्यदान सर्व को।
सदैव त्याग भूमिका समग्र लोक के लिए।
बहा रहे हैं स्वेद खून पेट तृप्ति के लिए।
सदा सहाय प्राण को बचा रहे किसान हैं।
उदारवादिता समग्र अन्तहीन आन है।
सदैव प्रेम भूमि से जमीन दिव्य प्राण है।
बिना किसान के मनुष्य जीव का न त्राण है।
मिला करे सदैव अन्न रोटियां अमूल्य हैं।
किसान ईश तुल्य है निदान भूख मूल्य है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।