### मेरा कवि मन कहता है……
#### मेरा कवि मन कहता है….
@ दिनेश एल० “जैहिंद”
किसी मजलूम की आवाज़ बनकर
उसकी आवाज़ दूर-दूर पहुँचाऊँ ।
किसी लाचार, बेबस, पीड़िता का
बनकर मैं मसीहा हक़ दिलवाऊँ ।
मेरा मन अब तरसता है……
मेरा कवि मन कहता है……
किसी असहाय कृषक का बनकर
सहारा उसकी खुशियाँ लौटाऊँ ।
किसी अनाथ को सहारा मैं देकर
उसका मददगार अब बन जाऊँ ।
मेरा ईमान ये कहता है……
मेरा कवि मन कहता है …..
इन गीत-ओ-ग़ज़लों में मैं अब तो
उनकी पीड़ा समाज को दिखाऊँ ।
उनके ही दुख-ओ-दर्द की कहानी
बनाकर मैं सरकार को बतलाऊँ ।
मेरा ज़मीर ये कहता है……
मेरा कवि मन कहता है……
जो मजबूर, बेसहारा और बीमार हैं
उन दीन-हीनों की आवाज़ हो जाऊँ ।
जो कमज़ोर, नि:सहाय, दीनदुखी हैं
उनकी खुशियों का अंदाज़ हो जाऊँ ।
मेरा रोम-रोम कहता है…….
मेरा कवि मन कहता है…….
मेरा कवि मन कहता है…….
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दिनेश एल० “जैहिंद”
08. 06. 2017