मूर्तियां भी मौन हैं
मूर्तियां भी मौन हैं
उस चीघती आबाज से,
मासूमों को नोच रहे
गिद्ध चील बाज से।
मस्जिदों के आला भी
समाधि ले सो रहे,
उनके नेक बंदे तो
चीख़ चीख़ रो रहे।
चर्च में भी लटके हुए
वहां पर भी मौन हो
मानवता रोज़ बिखर रही
कहाँ तुम कौन हो ?