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13 Feb 2021 · 1 min read

मुहब्बत के सदमे बहुत हैं उठाये

ग़ज़ल
122 122 122 122
मुहब्बत में सदमें बहुत हैं उठाए।
मगर हाले दिल अपना किसको सुनाए।

जिसे चाहतें थे ज़िगर से हमेशा
उसी ने ये’ हमपर सितम आज ढाए।

दिए ज़ख्म दिल पर कई हैं सनम ने
मगर मुस्कराकर हमेशा छुपाएं।

मुझे नींद आती नही रात में अब
हमें रात दिन याद उसकी सताए।

बसी इस कदर आज दिल में हमारे
भुलाएं तो कैसे उसे हम भुलाएं।

वो’ रूठे हुए हैं किसी बात पर अब
न माने तो कैसे उन्हें हम मनाएं।

बड़े प्यार से ये ग़ज़ल लिख रहा हूँ
तरन्नुम में कोई इसे गुनगुनाए।

मिले कुछ न ‘अभिनव’ यहाँ प्यार करके
किसी को हँसाये किसी को रुलाए।

©अभिनव मिश्र “अदम्य”

2 Likes · 2 Comments · 246 Views
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