मुहब्बत इम्तिहाँ लेती है…
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मुहब्बत इम्तिहाँ लेती है,
कोई माने, ना माने,
ये दिल को दर्द देती है,
ये कोई माने ना माने,
मुहब्बत इम्तिहाँ लेती है,
कोई माने ना माने …
बसा हो कोई जब मन में,
भुलाना, कब हुआ आसां ?
कोई हो जान जीवन की,
बिछुड़ना कब हुआ आसां ?
अगर वो दूर जाये तो,
ये सच में रो ही देती है,
मुहब्बत इम्तिहाँ लेती है,
कोई माने ना माने…
मुहब्बत करना भी होता,
इबादत करने जैसा है,
मीत गर मीत को समझे,
समझो पैगम्बर जैसा है,
अगर वो धोखा दे जाये तो,
दिल को तोड़ देती है,
मुहब्बत इम्तिहाँ लेती है,
कोई माने ना माने …
बड़ी मुश्किल से मिलता है,
मीत जो मन को भाता है,
जो दिल की आरज़ू बनकर,
सदां रिश्ता निभाता है,
अगर वो रूठ जाये तो,
हृदय व्याकुल कर देती है,
मुहब्बत इम्तिहाँ लेती है,
कोई माने ना माने …
हजारों, लाखों ऐसे हैं,
मुहब्बत हो गई जिनको,
मुहब्बत में जिसके लिए
जिन्होंने खो दिया खुद को,
अगर वो मिल न पाए तो,
कसक जीवन भर देती है ।
मुहब्बत इम्तिहाँ लेती है,
कोई माने ना माने …
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