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11 Sep 2021 · 1 min read

— मुर्दे को कंधा —

देखो कैसी यह होड़ मची
जल्दी जल्दी यह अर्थी उठी
मैं भी दे दूं कन्धा इनको
देखो चली रे यह अर्थी चली !!

आ आते हैं सब संगी साथी
मन में सब के खलबली मची
कोई रह न जाए कन्धा दिए बिना
देख लो यह रुखसत हो चली !!

जीते जी न दे सके कन्धा उस को
यह भी फितरत है कैसी भली
जब छोड़ गया श्वांस वो अपने
अर्थी को कन्धा देने भीड़ चली !!

डालो इस पर मेवे , मखाने ,नारियल
अब अर्थी में कहीं न रहे कोई कमी
जिन्दा साँसों के मुख में न डाल सका
अब कहता है मेरे यहाँ कुछ नही कमी !!

वाह रे प्राणी तेरे लीला है अजब ढली
अब तो तेरे द्वार से यह अर्थी है चली
अब तो जी ले जिन्दगी को अपनी
वो आकर कहाँ पूछे ,अब क्या है कमी !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 256 Views
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