“मुट्ठी भर खुशियां”
मुट्ठी भर खुशियां लेकर,
निकल पड़े बांटने को।
पीड़ा अपनी दे दो सारा,
सुख, चैन मेरा ले लो,
साध लगाए नयनों में,
निकल पड़े खोजने को।
मन में न अहंकार,
विधि का है विधान,
पर्वत से सरिता की धार,
निकलती है बिखरने को।
भेद-भाव, वाद-विवाद,
उत्पन्न मन में अविश्वास है,
जन कल्याण का संकल्प लिए,
चले जन-जन में प्रीति बढ़ाने को।
मुट्ठी भर खुशियां लेकर
निकल पड़े बांटने को।।
राकेश चौरसिया