मुझे पता है।
मुझे पता है
वो सर्द हवाएं उन्हें छू कर निकली,
वो गर्जता घन उन्हें निहार कर आया।
वो फुहार उसे देख कर मचली,
वो झोंका उसे पुकार कर आया ।
यह मंजर बड़ा सुहाना तो लगा मगर ,
तूझे लिखने की मिली फुर्सत तो है।
मैं हूं चाहे ग़म ए सैलाब में,
मुझे पता है तू खुश तो है।
मैं आवारा नहीं हूं,
जाहिल नहीं हूं।
मैं कश्ती हूं कोई
साहिल नहीं हूं।
मुझे है किनारा पाना,
लहरों को है गले लगाना,
कुछ न मिला…फूटी
किस्मत तो है।
मुझे पता है तू खुश तो है।
मेरी कोई हैसियत नहीं,
हां ठीक कहा अहमियत नहीं,
मगर दिल में अरमान जगा बैठा।
वो झोंका तेरी खुशबू लाया,
मैं सर पर आसमान उठा बैठा।
जर्जर ही सही जीवन तरणी,
तेरी कसम उल्फत तो है।
मुझे पता है तू खुश तो है।
मुझे मिलने को बेताब नहीं,
मुझे पाने का जिक्र नहीं।
जा ऐ उमड़ती घटा,
तूझे मेरी कोई फ़िक्र नहीं।
हूं अकेला और भी अकेला,
मुझे नहीं रास ये मेला,
तन्हा इस निशा-सफर में,
मालूम तेरी हां कीमत तो है।
मुझे पता है तू खुश तो है।
चलो ठीक है तू राजी
मेरी वैसे भी कोई राह नहीं।
मैं खरोंच लूंगा भूला गर जख्म,
फिर भी निकलेगी आह नहीं।
मैं दर्द को चाहे नासूर करूं,
या बता क्या कसूर करूं,
मुझे लगता ये जग पागल,
फिर भी थोड़ी शिकायत तो है।
मुझे पता है तू खुश तो है।।
रोहताश वर्मा ‘मुसाफ़िर’